ह्रदय बाबू करीब साल भर बाद इस मंदिर में आए थे। जब भी उनके जीवन में किसी चीज़ की आवश्यक्ता होती थी तो वह इसी मंदिर में आकर देवी से उसके लिए प्रार्थना करते थे।
ह्रदय बाबू पूजा का सामान लेने दुकान पर गए तो दुकानदार को देख चौंक गए। वह सरजू था। पहले छोटी सी टोकरी में रख कर मंदिर के बाहर फूल बेचता था।
"ये तुम्हारी दुकान है सरजू ?"
"हाँ बाबूजी इस नवरात्री के पहले दिन ही उद्घाटन किया है।"
"वाह इतनी जल्दी तरक्की कर ली। कोई पूजा वगैरह करवाई थी क्या ?"
"बाबूजी हम बहुत पढ़े लिखे तो हैं नहीं पर मंदिर की दीवार पर लिखा है कर्म ही पूजा है। हमने वही पूजा की है।"
ह्रदय बाबू सोंच रहे थे कि मंदिर से सबसे बड़ा ज्ञान तो सरजू ने लिया है।
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