ताई ने काम करते करते घड़ी की तरफ देखा। किसी भी समय वो आने वाला होगा।
आयेगा, अपना खाना खायेगा, कुछ देर आराम करेगा फिर चला जायेगा सड़कों पर
आवारागर्दी करने। पिछले दो सालों से यही नियम चल रहा है।
दो साल पहले वह ताई को मिला था। वह कहीं से लौट रही थीं और यह उनके पीछे लग लिया। ताई ने दुत्कारा किन्तु कोई फर्क नहीं पड़ा। वह ढीट की तरह उनके पीछे पीछे चलता रहा। दरवाजे पर पहुँच कर ताई ने फिर डांटा " अब क्या पीछे पीछे घर में भी घुसेगा।" वह अपनी मासूम आँखों से उन्हें ताकने लगा और छोटी सी दम हिलाने लगा। ताई का मन पसीज गया। शायद भूखा होगा सोच कर उन्होंने एक कटोरे में दूध डबलरोटी सान कर दे दिया। वह सप सप कर खाने लगा। खाने के बाद वहीँ आराम से बैठ गया। ताई ने फिर डांटा "क्या अब यहीं डेरा जमाएगा।" वह उठा और चुप चाप चला गया।
अगले दिन जब ताई तुलसी को जल चढ़ाने बाहर आईं तो देखा की तुलसी का गमला गिरा हुआ है। तभी उन्हें कूं कूं की आवाज़ सुने दी " तू फिर आ गया। ठहर, अभी मज़ा चखाती हूँ।" कह कर ताई उसे मारने दौड़ीं। किन्तु वह ताई के हाथ से बच निकला। ताई जीतनी कोशिश करतीं वह उतनी ही फुर्ती से निकल जाता। हार कर ताई वहीँ कुर्सी पर धम्म से बैठ गईं। वह जोर जोर से हांफ रही थीं। वह ताई के पास आया और अपने आगे के दो पंजे उठा कर उनकी गोद में चढ़ने का प्रयास करने लगा। ताई के दिल में भी ममता जाग गयी उन्होंने उसे गोद में उठा लिया। उस दिन से दोनों स्नेह के बंधन में बांध गए। ताई ने उसे नाम दिया नन्हकू।
ताई की उम्र करीब पैसठ वर्ष थी। इस दुनिया में वह अकेली थीं। उनके सूने जीवन में एक मात्र नन्हकू ही था। वह रोज़ उसके लिए खाना बनातीं और उसके आने का इंतजार करतीं। जैसे कोई माँ स्कूल से लौटते बच्चे का इंतज़ार करती है। उसे खिलाने के बाद ही कुछ खातीं।
सारा काम निपटा कर ताई बहार आयीं तो बहुत देर हो चुकी थी। 'अब तक नहीं आया' ताई ने मन ही मन सोंचा ' क्या बात है रोज़ तो अब तक आ जाता था।' वह बहार बैठ कर उसका इंतज़ार करने लगीं। प्रतीक्षा करते करते शाम घिर आयी। ताई की चिंता गहराने लगी ' कहीं किसी गाड़ी के नीचे तो नहीं आ गया।' सोंच कर उनकी आँखों में आंसू आ गए। वह सोचने लगीं ' हे प्रभु यह कैसी किस्मत है मेरी जिससे भी नेह लगाया वह छोड़ गया।' अँधेरा बढ़ गया था और ताई दिन भर की भूखी प्यासी वहीँ पर बैठी थीं। तभी उन्हें लगा जैसे की गेट पर कोई है। कहीं वही तो नहीं। ताई ने लपक कर बिजली जलाई। उनका नन्हकू ही था। बूढ़े शारीर में जाने कहाँ की शक्ति आ गयी उन्होंने दौड़ कर गेट खोला। नन्हकू लंगड़ा रहा था। उसके दाहिने कान से खून बह रहा था। " मेरा बच्चा यह क्या हो गया तुझे।" कह कर ताई ने उसे गले लगा लिया। वह इस तरह रो रही थीं जैसे उनका बेटा सीमा पर जंग लड़ते हुए घायल हुआ हो। उन्होंने उसका घाव साफ़ किया दावा लगाई। " पूरे दिन का भूखा होगा।" अपनी भूख प्यास भूल कर वह उसके लिए खाना लाने चली गयीं।
रचनाकार: आशीष त्रिवेदी की लघुकथा - नन्हकू
दो साल पहले वह ताई को मिला था। वह कहीं से लौट रही थीं और यह उनके पीछे लग लिया। ताई ने दुत्कारा किन्तु कोई फर्क नहीं पड़ा। वह ढीट की तरह उनके पीछे पीछे चलता रहा। दरवाजे पर पहुँच कर ताई ने फिर डांटा " अब क्या पीछे पीछे घर में भी घुसेगा।" वह अपनी मासूम आँखों से उन्हें ताकने लगा और छोटी सी दम हिलाने लगा। ताई का मन पसीज गया। शायद भूखा होगा सोच कर उन्होंने एक कटोरे में दूध डबलरोटी सान कर दे दिया। वह सप सप कर खाने लगा। खाने के बाद वहीँ आराम से बैठ गया। ताई ने फिर डांटा "क्या अब यहीं डेरा जमाएगा।" वह उठा और चुप चाप चला गया।
अगले दिन जब ताई तुलसी को जल चढ़ाने बाहर आईं तो देखा की तुलसी का गमला गिरा हुआ है। तभी उन्हें कूं कूं की आवाज़ सुने दी " तू फिर आ गया। ठहर, अभी मज़ा चखाती हूँ।" कह कर ताई उसे मारने दौड़ीं। किन्तु वह ताई के हाथ से बच निकला। ताई जीतनी कोशिश करतीं वह उतनी ही फुर्ती से निकल जाता। हार कर ताई वहीँ कुर्सी पर धम्म से बैठ गईं। वह जोर जोर से हांफ रही थीं। वह ताई के पास आया और अपने आगे के दो पंजे उठा कर उनकी गोद में चढ़ने का प्रयास करने लगा। ताई के दिल में भी ममता जाग गयी उन्होंने उसे गोद में उठा लिया। उस दिन से दोनों स्नेह के बंधन में बांध गए। ताई ने उसे नाम दिया नन्हकू।
ताई की उम्र करीब पैसठ वर्ष थी। इस दुनिया में वह अकेली थीं। उनके सूने जीवन में एक मात्र नन्हकू ही था। वह रोज़ उसके लिए खाना बनातीं और उसके आने का इंतजार करतीं। जैसे कोई माँ स्कूल से लौटते बच्चे का इंतज़ार करती है। उसे खिलाने के बाद ही कुछ खातीं।
सारा काम निपटा कर ताई बहार आयीं तो बहुत देर हो चुकी थी। 'अब तक नहीं आया' ताई ने मन ही मन सोंचा ' क्या बात है रोज़ तो अब तक आ जाता था।' वह बहार बैठ कर उसका इंतज़ार करने लगीं। प्रतीक्षा करते करते शाम घिर आयी। ताई की चिंता गहराने लगी ' कहीं किसी गाड़ी के नीचे तो नहीं आ गया।' सोंच कर उनकी आँखों में आंसू आ गए। वह सोचने लगीं ' हे प्रभु यह कैसी किस्मत है मेरी जिससे भी नेह लगाया वह छोड़ गया।' अँधेरा बढ़ गया था और ताई दिन भर की भूखी प्यासी वहीँ पर बैठी थीं। तभी उन्हें लगा जैसे की गेट पर कोई है। कहीं वही तो नहीं। ताई ने लपक कर बिजली जलाई। उनका नन्हकू ही था। बूढ़े शारीर में जाने कहाँ की शक्ति आ गयी उन्होंने दौड़ कर गेट खोला। नन्हकू लंगड़ा रहा था। उसके दाहिने कान से खून बह रहा था। " मेरा बच्चा यह क्या हो गया तुझे।" कह कर ताई ने उसे गले लगा लिया। वह इस तरह रो रही थीं जैसे उनका बेटा सीमा पर जंग लड़ते हुए घायल हुआ हो। उन्होंने उसका घाव साफ़ किया दावा लगाई। " पूरे दिन का भूखा होगा।" अपनी भूख प्यास भूल कर वह उसके लिए खाना लाने चली गयीं।
रचनाकार: आशीष त्रिवेदी की लघुकथा - नन्हकू
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