प्रतिमा और सचिन अभी अभी डिनर करके लौटे थे। आज उनकी शादी की दूसरी वर्षगांठ थी। पिछली बार की तरह इस बार भी वही हुआ। दोनों रेस्टोरेंट पहुंचे खाना आर्डर किया और चुप चाप डिनर लेकर लौट आये। दो एक औपचारिक बातों के सिवा उनके बीच कोई बात नहीं हुई। घर लौटते समय सचिन ने कहा " तुम तो जानती हो की मेरे पास वक़्त नहीं रहता और फिर मैं खरीददारी के मामले में कच्चा हूँ तुम ही अपने लिए कुछ ले लेना।"
सभी कहते हैं की प्रतिमा बहुत भाग्यशाली है। तभी तो उसे इतना अच्छा पति मिला है। अच्छी नौकरी है, सुदर्शन है, फिर कोई ऐब भी नहीं। फिर भी कुछ है जो प्रतिमा को खटकता है। उसने अपने जीवन की बहुत रूमानी परिकल्पना की थी। शायद किशोरावस्था में पढ़े गए रोमांटिक उपन्यासों का असर था की अपने जीवन साथी के तौर पर उसने एक ऐसे पुरुष की कल्पना की थी जो उसे बात बे बात सरप्राइज तोहफे दे, उसके साथ प्यार भरी बातें करे, उसे लाँग ड्राइव पर लेकर जाये। किन्तु सचिन का व्यक्तित्व ठीक उल्टा था वह मितभाषी और रिज़र्व किस्म का व्यक्ति था।
विवाह के प्रारंभिक दिनों में अक्सर प्रतिमा सोंचती की शायद कुछ दिन साथ रहने के बाद सचिन उससे खुल जायेगा । फिर उसके साथ बहुत सारा वक़्त बिताएगा। किन्तु सचिन की व्यस्तता बढती गयी। वह ज्यादा से ज्यादा वक़्त अपने काम को देने लगा। अकेलेपन को दूर करने के लिए प्रतिमा ने एक स्कूल में शिक्षिका की नौकरी कर ली। छोटे बच्चों के साथ वक़्त बिताना उसे अच्छा लगता था। यहीं उसकी दोस्ती मंजरी से हो गयी। मंजरी के विवाह को अभी कुछ ही महीने हुए थे। मंजरी अक्सर प्रतिमा को बताती की वो और उसके पति कहाँ घूमने गए, उसके पति ने उसे क्या तोहफा दिया। यह सब सुन कर प्रतिमा का मन अवसाद से भर जाता। उसे अपने और सचिन के रिश्ते में घुटन सी महसूस होने लगी थी।
दो दिनों बाद सचिन को अपनी कंपनी का प्रतिनिधित्व करने सिंगापूर जाना था जहाँ उसे एक डेलीगेशन को संबोधित करना था। यह एक बहुत बड़ा अवसर था जिसे लेकर वह बहुत उत्साहित था। प्रतिमा को सचिन के लिए पैकिंग करते हुए स्कूल जाने में देर हो गई थी। अतः वह तेज़ी से कार चलाकर स्कूल जा रही थी। वह स्कूल के पास पहुंची ही थी की अचानक एक कुत्ता दौड़ता हुआ सामने आ गया। उसे बचाने के चक्कर में वह कार को संभाल नहीं पाई और एक पेड़ से टकरा गयी।
जब उसे होश आया तो वह अस्पताल में थी। नर्स ने बताया की उसके पैर में फ्रैक्चर है और कंधे में भी चोट लगी है। कोई खतरे की बात नहीं किन्तु उसे कुछ दिन आराम करना होगा। प्रतिमा डर रही थी की सचिन उससे नाराज़ होगा। इतना अच्छा अवसर मिला था जो उसकी वजह से बेकार हो जायेगा। सचिन ने कमरे में प्रवेश किया। उसकी आँखों में चिंता की झलक थी " कैसी हो, बहुत दर्द है क्या " उसने प्यार से सर पर हाँथ फेरते हुए पूंछा। प्रतिमा ने रुंधे हुए गले से कहा " मेरी वजह से आप सिंगापूर नहीं जा पाएंगे। कितना बड़ा अवसर था आपके लिए।" सचिन ने आत्मीयता के साथ उसका हाँथ पकड़ा " यदि मैं मेहनत करूंगा तो ऐसे बहुत से अवसर मिलेंगे, किन्तु विवाह के समय सुख दुःख में साथ निभाने का वचन दिया था, तुम्हें इस तकलीफ में कैसे छोड़ दूं।" प्रतिमा की आँखों से आंसू की अविरल धारा बहने लगी। वो इस प्रेम को पहचान नहीं पाई। सचिन प्यार से उसके सर पर हाँथ फेरता रहा और वह सो गयी।
अगले दिन जब प्रतिमा सोकर उठी तो साइड टेबल पर रखा कैलेंडर 14 फरवरी की तारीख दिखा रहा था। पास ही चाकलेट्स का एक डब्बा और लाल गुलाबों का एक बुके था। बुके पर एक कार्ड लगा था ' मेरी पत्नी के लिए जिसे मैं बहुत चाहता हूँ।'
http://www.tumbhi.com/writing/short-stories/chocolates-aur-lal-g/ashish-trivedi/40874#.U7OWlcjKPis.gmail
सभी कहते हैं की प्रतिमा बहुत भाग्यशाली है। तभी तो उसे इतना अच्छा पति मिला है। अच्छी नौकरी है, सुदर्शन है, फिर कोई ऐब भी नहीं। फिर भी कुछ है जो प्रतिमा को खटकता है। उसने अपने जीवन की बहुत रूमानी परिकल्पना की थी। शायद किशोरावस्था में पढ़े गए रोमांटिक उपन्यासों का असर था की अपने जीवन साथी के तौर पर उसने एक ऐसे पुरुष की कल्पना की थी जो उसे बात बे बात सरप्राइज तोहफे दे, उसके साथ प्यार भरी बातें करे, उसे लाँग ड्राइव पर लेकर जाये। किन्तु सचिन का व्यक्तित्व ठीक उल्टा था वह मितभाषी और रिज़र्व किस्म का व्यक्ति था।
विवाह के प्रारंभिक दिनों में अक्सर प्रतिमा सोंचती की शायद कुछ दिन साथ रहने के बाद सचिन उससे खुल जायेगा । फिर उसके साथ बहुत सारा वक़्त बिताएगा। किन्तु सचिन की व्यस्तता बढती गयी। वह ज्यादा से ज्यादा वक़्त अपने काम को देने लगा। अकेलेपन को दूर करने के लिए प्रतिमा ने एक स्कूल में शिक्षिका की नौकरी कर ली। छोटे बच्चों के साथ वक़्त बिताना उसे अच्छा लगता था। यहीं उसकी दोस्ती मंजरी से हो गयी। मंजरी के विवाह को अभी कुछ ही महीने हुए थे। मंजरी अक्सर प्रतिमा को बताती की वो और उसके पति कहाँ घूमने गए, उसके पति ने उसे क्या तोहफा दिया। यह सब सुन कर प्रतिमा का मन अवसाद से भर जाता। उसे अपने और सचिन के रिश्ते में घुटन सी महसूस होने लगी थी।
दो दिनों बाद सचिन को अपनी कंपनी का प्रतिनिधित्व करने सिंगापूर जाना था जहाँ उसे एक डेलीगेशन को संबोधित करना था। यह एक बहुत बड़ा अवसर था जिसे लेकर वह बहुत उत्साहित था। प्रतिमा को सचिन के लिए पैकिंग करते हुए स्कूल जाने में देर हो गई थी। अतः वह तेज़ी से कार चलाकर स्कूल जा रही थी। वह स्कूल के पास पहुंची ही थी की अचानक एक कुत्ता दौड़ता हुआ सामने आ गया। उसे बचाने के चक्कर में वह कार को संभाल नहीं पाई और एक पेड़ से टकरा गयी।
जब उसे होश आया तो वह अस्पताल में थी। नर्स ने बताया की उसके पैर में फ्रैक्चर है और कंधे में भी चोट लगी है। कोई खतरे की बात नहीं किन्तु उसे कुछ दिन आराम करना होगा। प्रतिमा डर रही थी की सचिन उससे नाराज़ होगा। इतना अच्छा अवसर मिला था जो उसकी वजह से बेकार हो जायेगा। सचिन ने कमरे में प्रवेश किया। उसकी आँखों में चिंता की झलक थी " कैसी हो, बहुत दर्द है क्या " उसने प्यार से सर पर हाँथ फेरते हुए पूंछा। प्रतिमा ने रुंधे हुए गले से कहा " मेरी वजह से आप सिंगापूर नहीं जा पाएंगे। कितना बड़ा अवसर था आपके लिए।" सचिन ने आत्मीयता के साथ उसका हाँथ पकड़ा " यदि मैं मेहनत करूंगा तो ऐसे बहुत से अवसर मिलेंगे, किन्तु विवाह के समय सुख दुःख में साथ निभाने का वचन दिया था, तुम्हें इस तकलीफ में कैसे छोड़ दूं।" प्रतिमा की आँखों से आंसू की अविरल धारा बहने लगी। वो इस प्रेम को पहचान नहीं पाई। सचिन प्यार से उसके सर पर हाँथ फेरता रहा और वह सो गयी।
अगले दिन जब प्रतिमा सोकर उठी तो साइड टेबल पर रखा कैलेंडर 14 फरवरी की तारीख दिखा रहा था। पास ही चाकलेट्स का एक डब्बा और लाल गुलाबों का एक बुके था। बुके पर एक कार्ड लगा था ' मेरी पत्नी के लिए जिसे मैं बहुत चाहता हूँ।'
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