सीधे मुख्य सामग्री पर जाएं

भंवर

नितिन सोफे पर लेटे हुए अपने ड्रिंक की चुस्कियां ले रहा था। उसका मन कुछ विचलित सा था। सोनिया भी पास में आकर बैठ गई और उसके बालों में अपनी उंगलियां फिराने लगी। नितिन उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा दिया। पिछले कई दिनों से वह उसकी बेचैनी महसूस कर रही थी। इसलिए वह उससे बात करना चाहती थी।
" कुछ दिनों से परेशांन लग रहे हो। "  सोनिया ने पूंछा।
" हमारी ज़िन्दगी बारे में सोंच रहा था। अभी तक हम कुछ भी हांसिल नहीं कर पाए। "
" ऐसा क्यों सोंचते हो क्या कमी है हमारे पास।  अच्छा जॉब , घर, गाडी हर एक चीज़ है जो आरामदायक जीवन के लिए चाहिए। " सोनिया ने तसल्ली देनी चाही। नितिन और भड़क गया।
" इससे क्या होता है। कहीं न कहीं हम रेस में पिछड़े हैं। उस रॉबिन को देखो हमारे साथ कॉलेज में था। कुछ भी नहीं था उसके पास। कितनी बार तो मैंने पैसों से उसकी मदद की। पर आज देखो कहाँ है। उसके सामने तो हम कुछ भी नहीं हैं। "
" फिर भी हम खुश हैं।  हमें क्या कमी है। "
" मैं उनमें नहीं हूँ जो नीचे देखते हैं। मैं ऊपर देखता हूँ। मुझे सबसे ऊपर जाना है। " नितिन ने उत्तेजित होकर कहा। फिर उठ कर सोने चला गया। सोनिया सोंच में पड़ गई।
जब से उन दोनों की मुलाकात रॉबिन से हुई थी नितिन के व्यवहार में एक बदलाव आ गया था। रॉबिन ने बहुत अधिक तरक्की कर ली थी। वह एक ऐड एजेंसी का मालिक था। समाज के बड़े बड़े लोगों तक उसकी पहुँच थी। कभी पैसों के लिए मोहताज़ रॉबिन की इतनी तरक्की नितिन से बर्दाश्त नहीं हो रही थी।

रॉबिन भी जबसे नितिन और सोनिया से मिला था बेचैन था। कॉलेज के समय से ही वह मन ही मन सोनिया को चाहता था।  लेकिन सोनिया का झुकाव नितिन की तरफ था। अक्सर नितिन पैसों से उसकी मदद करता रहता था। अतः वह कुछ कह नहीं पाता था। किंतु इतने वर्षों के  बाद जबसे उसने सोनिया को देखा तब से उसे पाने की चाह एक ज्वालामुखी की तरह फूट पड़ी। अब तो वह नितिन से हैसियत में बहुत आगे था। अतः उसी दिन से वह सोनिया को पाने की चाल सोंचने लगा। इसी के तहत एक दिन उसने नितिन को अकेले अपने घर मिलने बुलाया।

उसकी दावत कुबूल कर नितिन उसके घर पहुंचा। उसकी शानो शौकत देख कर उसकी आँखे फटी रह गईं। पीने पिलाने के दौर में रॉबिन ने अपना फंदा फेंका। उसने दोगुने वेतन का लालच देकर उसे अपनी ऐड एजेंसी में शामिल होने के लिए मना लिया। अब रॉबिन का नितिन के घर आना जाना बढ़ गया। अब वो सोनिया से नज़दीकी बढ़ाने लगा। जल्द ही उसने उसे भी अपने दफ्तर में काम करने को राज़ी कर लिया। सोनिया को पाने की चाह अब और भी बलवती हो गई थी।

रॉबिन नितिन की कमज़ोरी को भांप चुका था। तरक्की करने के लिए नितिन कुछ भी कर सकता था। अतः उसने अपना दांव खेला। उसने नितिन को नई ब्रांच का हेड बना दिया। साथ में उस ब्रांच के मुनाफे का १० % भी देने का वायदा किया। इसी के साथ उसने खुल कर अपने दिल की बात उसके सामने रख दी।

नितिन भी सोनिया की तरफ उसके आकर्षण को समझ चुका था। किंतु जानबूझ कर अनजान बना था। तरक्की का यह अवसर उसके लिए बहुत बड़ा लालच था। उसने रॉबिन की बात मान ली। जब उसने सोनिया से इस बारे में बात की तो कुछ क्षण तक तो वह स्तब्ध खड़ी रही। फिर खुद को संभाल कर बोली " तुम होश में तो हो न। ये क्या कह रहे हो। " किंतु नितिन लालच में इतना अंधा हो गया था कि सही गलत का फ़र्क भी भूल गया था। उसने सोनिया पर दबाव डाला कि वह उसके कहे अनुसार रॉबिन से संबंध बनाये। अपने रिश्ते को बचाने के लिए उसे हार माननी पड़ी।

सोनिया को एक बार पा लेने के बाद रॉबिन की चाह और बढ़ गई।  बात बात पर वह उसे ब्लैकमेल करता था और पूरी बेशर्मी के साथ सोनिया को संबंध के लिए मज़बूर करने लगा था।। मज़बूरी में फंसी सोनिया के दिल में नितिन के प्रति नफ़रत पनपने लगी थी। उसे जलाने के लिए वो जानबूझ कर रॉबिन के और नज़दीक जाने लगी। अपने स्वार्थ के लिए नितिन ने उसे इस कींचड़ में घंसीटा था। किंतु अब उसे सोनिया और रॉबिन की नज़दीकी सहन नहीं होती थी। वह रॉबिन को रास्ते से हटाना चाहता था।

रॉबिन भी अब नितिन को सह नहीं पा रहा था। नितिन बस उसके लिए एक माध्यम था जिसके सहारे वह अपनी हसरत पूरी करना चाहता था। अब वह पूरी हो गई थी। अतः नितिन उसके लिए बेकार हो गया था। सोनिया भी नितिन से बेपनाह नफ़रत करने लगी थी। स्तिथि का फायदा उठा कर उसने रॉबिन को नितिन के खिलाफ भड़काना शुरू किया। उसने और रॉबिन ने नितिन को रस्ते से हटाने का प्लान बनाया। सोनिया ने मन ही मन तय कर लिया था कि रॉबिन जब नितिन को मार देगा तो वह भी उसे ठिकाने लगा देगी।

प्लान के मुताबिक तीनो रॉबिन की यॉट पर मिले। नितिन भी अपनी तैयारी के साथ आया था। एक दूसरे के प्रति नफ़रत लिए नितिन और रॉबिन पीने बैठ गए। जब नशा सर चढ़ गया तो दोनों में अचानक बहस शुरू हो गई। बहस हाथापाई में बदल गई। रॉबिन कुछ करता उससे पहले ही नितिन ने गोली चला दी जो रॉबिन का सीना चीरती हुई निकल गई। फिर वह सोनिया की तरफ लपका। सोनिया पहले ही तैयार थी। उसने गोलियों से उसका सीना छलनी कर दिया।

वासना लालच ईर्ष्या और क्रोध के भंवर में फँसी तीन जिंदगियां तबाह हो गईं। रोबिन अस्पताल में कोमा में पड़ा था और सोनिया जेल की सलाखों के पीछे।



http://www.tumbhi.com/writing/short-stories/bhanwar/ashish-trivedi/59233#.VT8gdmxK3cA.facebook







टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ना मे हाँ

सब तरफ चर्चा थी कि गीता पुलिस थाने के सामने धरने पर बैठी थी। उसने अजय के खिलाफ जो शिकायत की थी उस पर कोई कार्यवाही नहीं हुई थी।  पिछले कई महीनों से गीता बहुत परेशान थी। कॉलेज आते जाते अजय उसे तंग करता था। वह उससे प्रेम करने का दावा करता था। गीता उसे समझाती थी कि उसे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं है। वह सिर्फ पढ़ना चाहती है। लेकिन अजय हंस कर कहता कि लड़की की ना में ही उसकी हाँ होती है।  गीता ने बहुत कोशिश की कि बात अजय की समझ में आ जाए कि उसकी ना का मतलब ना ही है। पर अजय नहीं समझा। पुलिस भी कछ नहीं कर रही थी। हार कर गीता यह तख्ती लेकर धरने पर बैठ गई कि 'लड़की की ना का सम्मान करो।'  सभी उसकी तारीफ कर रहे थे।

गुमसुम

अपने पापा के सामने बैठा विपुल बहुत उदास था. उसके जीवन में इतनी बड़ी खुशी आई थी किंतु उसके पापा उदासीन बैठे थे. तीन साल पहले हुए हादसे ने उससे उसके पिता को छीन लिया था. उसके पापा की आंखों के सामने ही नदी की तेज़ धारा मम्मी को बहा कर ले गई थी. उस दिन से उसके पिता जैसे अपने भीतर ही कहीं खो गए थे. विपुल ने बहुत प्रयास किया कि किसी तरह उनकी उस अंदरूनी दुनिया में प्रवेश कर सके. परंतु उसकी हर कोशिश नाकामयाब रही. इस नाकामयाबी का परिणाम यह हुआ कि वह स्वयं की निराशा के अंधेरे में खोने लगा. ऐसे में अपने शुभचिंतकों की बात मान कर उसने विवाह कर अपने जीवन को एक नई दिशा दी. वह निराशा के भंवर से उबरने लगा. लेकिन अपने पापा की स्थिति पर उसे दुख होता था. दस दिन पहले जन्मी अपनी बच्ची के रोने की आवाज़ उसे उसके विचारों से बाहर ले आई. वह उसके पालने के पास गया. उसकी पत्नी सो रही थी. उसने पूरे एहतियात से बच्ची को उठाया और उसे लेकर अपने पापा के पास आ गया. विपुल ने बच्ची को अपने पिता के हाथों में सौंप दिया. बच्ची उन्हें देख कर मुस्कुरा दी. कुछ देर उसै देखने के बाद उन्होंने उसे उठाया और सीने से लगा लिया. विप...

केंद्र बिंदु

पारस देख रहा था कि आरव का मन खाने से अधिक अपने फोन पर था। वह बार बार मैसेज चेक कर रहा था। सिर्फ दो रोटी खाकर वह प्लेट किचन में रखने के लिए उठा तो पारस ने टोंक दिया। "खाना तो ढंग से खाओ। जल्दी किस बात की है तुम्हें।" "बस पापा मेरा पेट भर गया।" कहते हुए वह प्लेट किचन में रख अपने कमरे में चला गया। पारस का मन भी खाने से उचट गया। उसने प्लेट की रोटी खत्म की और प्लेट किचन में रख आया। बचा हुआ खाना फ्रिज में रख कर वह भी अपने कमरे में चला गया। लैपटॉप खोल कर वह ऑफिस का काम करने लगा। पर काम में उसका मन नही लग रहा था। वह आरव के विषय में सोच रहा था। उसने महसूस किया था कि पिछले कुछ महीनों में आरव के बर्ताव में बहुत परिवर्तन आ गया है। पहले डिनर का समय खाने के साथ साथ आपसी बातचीत का भी होता था। आरव उसे स्कूल में क्या हुआ इसका पूरा ब्यौरा देता था। किंतु जबसे उसने कॉलेज जाना शुरू किया है तब से बहुत कम बात करता है। इधर कुछ दिनों से तो उसका ध्यान ही जैसे घर में नही रहता था। पारस सोचने लगा। उम्र का तकाज़ा है। उन्नीस साल का हो गया है अब वह। नए दोस्त नया माहौल इस सब में उसने अपनी अलग दुनि...