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खिंचाव



                          
 शाज़िया और अब्रार घबराए हुए से पुलिस स्टेशन में दाखिल हुए।


"हमें अपने बच्चे की गुमषुदगी की रिपोर्ट लिखानी है।" शाज़िया ने भर्राए हुए स्वर में कहा।


"जी ज़रूर लिखेंगे। पहले आप बैठ जाएं।" ड्यूटी पर मौजूद पुलिस इंस्पेक्टर ने कहा।


शाज़िया और अब्रार के बैठने पर इंस्पेक्टर ने कहा।


"अब बताइए। बच्चा कब से गायब है। आप लोगों ने आस पड़ोस, रिश्तेदारों से पूँछताछ की।"


"जी सब जगह पता कर लिया। हमारे बेटे का कोई पता नहीं चल रहा।" अब्रार ने जवाब दिया।


"ठीक है बच्चे के बारे में बताइए।"


"नाम है अमान, उम्र बारह वर्ष, छठी कक्षा में पढ़ता है।" अब्रार ने बच्चे के बारे में बताया।"


"कद काठी।"


"मंझोला कद है। रंग गेहुंआ। इकहरा बदन है।"


"कब से गायब है।"


"आज शाम छह बजे से। सर वो यह नोट छोड़ कर गया है।" अब्रार ने जेब से एक कागज़ निकाल कर बढ़ा दिया।


इंस्पेक्टर उसे पढ़ने लगा।


'मम्मी मैं जा रहा हूँ। मैं मन लगा कर पढ़ता हूँ। फिर भी मेरे नंबर ज़रा से कम होने पर आप नाराज़ हो जाती हैं। आज मैंने इतनी मिन्नतें कीं पर आपने मुझे मेरे बेस्ट फ्रेंड की बर्थडे पार्टी में नहीं जाने दिया। मेरा दम घुटता है। मैं अपने मन का कुछ भी नहीं कर पाता। मुझे माफ कर देना। डैडी को भी सॉरी बोल रहा हूँ। "


"इससे तो स्पष्ट है कि बच्चा नाराज़ होकर खुद ही घर छोड़ कर चला गया है। आप लोग बच्चे की कोई तस्वीर लाए हैं।"


अब्रार ने अमान की फोटो निकाल कर दे दी। इंस्पेक्टर ने फोटो लेकर अपने सहयोगी को निर्देश दिए कि फोटो सभी थानों में भेज कर उन्हें अलर्ट कर दिया जाए। ताकि बच्चा जल्द से जल्द मिल सके।


शाज़िया ने पूँछा।


"सर मेरा बेटा मिल तो जाएगा?"


"जी हम पूरी कोशिश करेंगे। आप लोग इत्मिनान रखें।"


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आज दोपहर को बहुत दिनों के बाद अब्रार, अमान और शाज़िया ने एक साथ लंच किया था। अब्रार तीन दिन के अपने बिज़नेस ट्रिप से लौटा था। खाने के बाद वह अपनी ट्रिप के बारे में बताने लगा। इसी बातचीत के दौरान अमान ने कुछ सकुचाते हुए कहा।


"मम्मी आज मयंक का बर्थडे है। उसने मुझे बुलाया है। मैं चला जाऊँ।"


"बेटा अब हॉफ इयरली होने वाले हैं। इस बार वैसे भी तुमने टेस्ट में अच्छा नहीं किया है। वहाँ जाओगे तो दो तीन घंटे बर्बाद हो जाएंगे। तुम घर पर पढ़ाई करो।"


"मम्मी वो मेरा बेस्ट फ्रेंड है। जाने दो ना प्लीज़।"


"नहीं बेटा समझो। तुम पढ़ाई में पिछड़ रहे हो। बाद में हम कोई अच्छा सा गिफ्ट लेकर उसे दे आएंगे।"


"मम्मी प्लीज़, मेरे सारे दोस्त आने वाले हैं। मैं जल्दी लौट आऊँगा।"


"देखो तुम्हें पता है ना कि मुझे बहस पसंद नहीं। जाकर आराम करो थोड़ी देर में ट्यूशन वाले सर आते होंगे।"


अमान दुखी मन से अपने कमरे में आराम करने चला गया।


"तुम उस पर कुछ ज्यादा ही सख्ती नहीं करती हो?" अब्रार ने शाज़िया से पूँछा।


"आपको नहीं पता इस बार क्लास टेस्ट में तीसरे नंबर पर आया है।"


"तो फेल तो नहीं हुआ ना। कोई ज़रूरी है कि हमेशा पहले नंबर पर रहे। देखो उसे अपने हिसाब से चीज़ों को सीखने दो। जबरदस्ती मत करो।"


"आप से क्या बहस करूँ। आप तो ज़माने को देख कर चलते नहीं। हर जगह कितनी मारामारी है। दौड़ लगी है। पीछे रहने वाले का कुछ नहीं होगा। इसलिए सख्त हूँ। थोड़ी भी ढील दूँगी तो हाथ से निकल जाएगा।"


"लेकिन इतनी भी सख्त ना बनो कि उसे घुटन होने लगे।"


कहकर अब्रार भी आराम करने चला गया।


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अमान बहुत ही समझदार बच्चा था। पढ़ाई में भी मन लगाता था। कभी क्लास में बहुत पीछे नहीं रहता था। इस उम्र में ही उसने ऐरोनॉटिकल इंजीनियर बनने का सपना देखा था। शाज़िया सब समझती थी। फिर भी उसके नंबर थोड़े भी कम होते थे तो वह उस पर सख्ती करने लगती थी। वह चाहती थी कि वह सदा सबसे आगे रहे।
शाज़िया ने अमान के लिए एक टाइमटेबल बनाया था। उसे उसके अनुसार चलना पड़ता था। उस टाइमटेबल में खेलकूद हंसी मज़ाक, टीवी देखने का समय ना के बराबर था। खेल के नाम पर उसे टेनिस की कोचिंग दिला दी थी। जबकी अमान की टेनिस में कोई दिलचस्पी नहीं थी।
त्यौहार पर भी अमान को बहुत अधिक छूट नहीं मिलती थी। नाते रिश्तेदारों में ना शाज़िया खुद जाती थी और ना अमान को जाने देती थी। शाज़िया का केवल एक ही तर्क था कि अभी पढ़ लो यह सब तो बाद में भी कर सकते हो। इतनी अधिक पाबंदियों से अमान ऊबने लगा था। जिसका असर उसकी पढ़ाई पर होने लगा था। उसे पढ़ाई किसी क़ैद की तरह लगने लगी थी।
शाज़िया के इस बर्ताव की वजह थी उसका डर। उसकी बड़ी बहन का बेटा गलत संगत में पड़ कर बिगड़ गया था। जिससे उसकी पढ़ाई का नुकसान हुआ। सही शिक्षा ना मिलने के कारण वह कुछ खास नहीं कर सका। जब भी वह अपनी बहन को दुखी देखती थी तब उसे यही डर सताता था कि कहीं अमान भी उसी राह पर ना चला जाए। अतः वह उस पर कड़ा अनुशासन रखती थी।
अब्रार समझता था कि अपने डर के कारण शाज़िया अमान पर बहुत अधिक बोझ डाल रही है। इसलिए वह समय समय पर इसका विरोध करता था। बात बहस तक पहुँच जाती थी। शाज़िया उसे अनेक उदाहरण देकर खुद को सही साबित करने का प्रयास करती थी। अब्रार उसे समझाता कि बच्चे के लिए सिर्फ क्लास में अव्वल आना ज़रूरी नहीं है। ज़रूरी है कि वह अच्छे व्यक्तित्व का स्वामी बने। ऐसा होने के लिए बच्चों पर अधिक दबाव डाले बिना अपने स्तर पर प्रयास करने देना चाहिए। हमें केवल उन्हें मार्गदर्शन देना चाहिए। पर शाज़िया किसी तरह मानने को तैयार नहीं थी।


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शाज़िया के मना कर देने के बाद से अमान का मन खिन्न हो गया था। ट्यूशन टीचर के बार बार टोंकने पर भी वह पढ़ाई में मन नहीं लगा पा रहा था।
ट्यूशन टीचर के जाने के बाद शाज़िया दूध और नाश्ता लेकर उसके कमरे में गई। उस समय वह अपनी  नोटबुक में कुछ लिख रहा था। दूध मेज़ पर रख कर शाज़िया ने सर पर हाथ फेर कर कहा।


"गुड बॉय..... दूध पी लेना।"


शाज़िया के कमरे से जाते ही अमान ने नोट वाला पन्ना फाड़ कर दूध के गिलास के नीचे दबा दिया। बैकपैक बैग में कुछ कपड़े रखे। अपने गुल्लक से पैसे निकाल कर बैग में रख लिए। उसने मन बना लिया था कि कुछ दिन ननिहाल में जाकर रहेगा।
कमरे के बाहर निकल कर उसने स्थिति का जायजा लिया। अब्रार कमरे में अपने लैपटॉप पर काम कर रहा था। शाज़िया अलमारी में कपड़े व्यवस्थित कर रही थी। सही मौका देख कर वह घर से निकल गया।
कुछ समय बाद जब शाज़िया कमरे में यह देखने गई कि अमान ने दूध पिया कि नहीं तो अमान वहाँ नहीं था। दूध वैसा ही रखा था। गिलास के नीचे उसे नोट मिला। उसे पढ़ते ही उसके होश फाख्ता हो गए। उसने फौरन अब्रार को खबर दी। दोनों ने जहाँ जहाँ उम्मीद थी वहाँ उसे खोज लिया। निराश हो कर दोनों पुलिस स्टेशन चले गए।


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घर से निकल कर अमान सीधा बस स्टॉप पर गया। वह कभी अकेले बाहर नहीं निकला था। अतः नहीं जानता था कि रेलवे स्टेशन कैसे पहुँचना है। उसे बस स्टॉप पर एक आदमी खड़ा मिला। उसने उस आदमी से पूँछा।


"अंकल रेलवे स्टेशन जाने के लिए कौन सी बस पकड़नी है?"


उस आदमी ने उसे गौर से देखा। वह समझ गया कि लड़का अकेले बिना किसी को बताए आया है।


"अरे मुझे भी वहीं जाना है। मैं पहुँचा दूँगा। अभी बस आएगी। मेरे साथ चढ़ जाना।"


बस के आने पर अमान उस आदमी के साथ चढ़ गया। दो स्टॉप के बाद वह आदमी अमान को लेकर उतर गया।


"अंकल स्टेशन पास में ही है?"


"हाँ बस कुछ ही दूर पर। लेकिन पहले मैं घर से अपना सामान ले लूँ फिर चलते हैं। आओ मेरे साथ।"


वह आदमी अमान को लेकर आगे बढ़ने लगा। अमान को कुछ सही नहीं लग रहा था। उसने समझदारी से काम लिया। चलते चलते अचानक रुक गया।


"अंकल मुझे बहुत ज़ोर से सू सू लगी है। मैं यहीं नाली में कर लेता हूँ।"


उस आदमी ने कहा कि उसके घर पहुँच कर कर ले। लेकिन अमान ने ऐसा दिखाया कि उससे बर्दाश्त नहीं हो रहा है। अतः वह मान गया। वह आदमी दूसरी तरफ मुंह घुमा कर खड़ा हो गया। मौका देखते ही अमान भाग लिया।


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रात के साढ़े नौ बज गए थे। अमान की कोई खबर नहीं मिली थी। शाज़िया का रो रो कर बुरा हाल था। अब्रार उसे सांत्वना दे रहा था। कुछ मित्र और रिश्तेदार अपनी तरफ से भी प्रयास कर रहे थे।
शाज़िया अब बहुत पछता रही थी। बार बार यही कह रही थी कि उसे अमान के साथ इतनी ज्यादती नहीं करनी चाहिए थी।


"बस मेरा बच्चा सही सलामत घर लौट आए। मैं उस पर कोई सख्ती नहीं करूँगी।"


"खुदा पर यकीन रखो। वह जल्दी ही हमारे साथ होगा।"


"आपने हमेशा समझाया पर मैं नहीं मानी। मुझे आपकी बात सुननी चाहिए थी।"


"मैं यही समझाता था कि रबर खिंचती तो है। पर जब खिंचाव हद से ज्यादा हो जाए तो बीच से टूट जाती है।"


शाज़िया अब्रार के सीने से लग कर रोने लगी।


तभी अब्रार के मोबाइल पर एक कॉल आई।


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कुछ देर तक तो अमान बस भागता रहा। जब उसे यकीन हो गया कि वह आदमी उसके पीछे नहीं है तो रुक कर उसने आसपास देखा। अंधेरा हो गया था। स्ट्रीट लाइट जल रही थी। वह इस इलाके से पूर्णतया अनजान था।
अमान अब घर छोड़ने के अपने फैसले पर पछता रहा था। उसे डर लग रहा था। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे? वह रोने लगा। लेकिन फिर उसने अपने आप को नियंत्रित कर लिया। वह अपने घर वापस जाना चाहता था। अतः हिम्मत कर आगे बढ़ने लगा। लेकिन इस बार वह सावधानी बरत रहा था। इधर उधर देख कर चल रहा था कि कहीं वह बदमाश आदमी पीछे तो नहीं है। वह जानता था कि अब पुलिस ही उसकी मदद कर सकती है। वह भटकते हुए पुलिस स्टेशन की तलाश करने लगा।
सभी थानों में अमान की फोटो पहुँच गई थी। उसकी तलाश जारी थी। लेकिन अभी तक कोई सूचना नहीं मिली थी।
इंस्पेक्टर शरद जीप में बैठ कर सावधानी से इधर उधर देखते हुए अमान को ढूंढ़ रहे थे। अमान चलते हुए मुख्य सड़क पर आ गया। उसे सामने से एक जीप आती हुई दिखाई पड़ी। साथ में बैठा हवलदार चिल्लाया।


"सर उधर एक लड़का है।"


अमान ठीक से कुछ समझ नहीं पाया। डर कर वह गली के अंदर भागा। इंस्पेक्टर शरद भी जीप से कूद कर उसकी तरफ लपके। अमान एक किनारे खड़ी कार के पीछे छिप गया।


"बेटा डरो नहीं। हम पुलिस वाले हैं। तुम्हारी मदद के लिए आए हैं।"


अमान ने देखा कि वह आदमी पुलिस की वर्दी में है। उसका डर दूर हो गया। वह दौड़ कर इंस्पेक्टर शरद के पास चला गया।


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फोन पर जो खबर मिली उसे सुन कर अब्रार के चेहरे पर चमक आ गई।


"खुदा ने हमारी सुन ली। अमान मिल गया।"


दोनों ने खुदा का शुक्र अदा किया और पुलिस स्टेशन की तरफ भागे।


अपने माता पिता को देख कर अमान दौड़ कर उनके गले लग गया। तीनों लोगों की आँखों से आंसू बह रहे थे।


"सॉरी अब मैं कभी ऐसी गलती नहीं करूँगा। आप लोगों की हर बात मानूँगा।"


"माफी तो मुझे मांगनी है बेटा। अब मैं कभी तुम पर पढ़ाई का दबाव नहीं बनाऊँगी। तुम जो चाहोगे करने दूँगी।"


"मम्मी मैं भी खूब मन लगा कर पढूँगा। कभी शिकायत का मौका नहीं दूँगा।"


अब्रार ने पुलिस वालों को धन्यवाद दिया। शाज़िया और अमान को लेकर घर वापस लौट गया।

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