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अंतर्जाल



                     
     


इंस्पेक्टर शारिक पूँछताछ के लिए अस्पताल पहुँचा। उसे सूचना मिली थी कि चौदह साल के साकेत लखानी ने अपनी बिल्डिंग की टेरेस से कूद कर आत्महत्या करने का प्रयास किया था। वह गंभीर रूप से घायल था। आई.सी.यू. में ज़िंदगी की जंग लड़ रहा था। शारिक के सामने बदहवास से माता पिता बैठे थे। स्वयं एक बच्चे के पिता होने के नाते वह उनकी मनःस्थिति समझ सकता था। लेकिन ड्यूटी तो करनी ही थी।


"मैं आप लोगों की तकलीफ समझता हूँ। फिर भी पूँछना ज़रूरी है। साकेत को क्या परेशानी थी कि उसने टेरेस से कूद कर आत्महत्या करने की कोशिश की। क्या आप लोगों ने किसी बात के लिए उसे डांटा था?"


साकेत के पिता सुंदर लखानी ने जवाब दिया।


"जी नहीं। हम तो कभी भी किसी भी बात के लिए उसे नहीं डांटते थे। उसकी हर इच्छा पूरी करते थे।"


"जब वह टेरेस से कूदा उस समय घर पर कौन था?"


"जी हम दोनों तो अपने अपने काम पर गए थे। घर पर हमारी हॉउस कीपर मरियम थी। लेकिन उस समय वह भी कुछ सामान लेने बाहर गई थी।"


"आप लोगों को खबर कैसे मिली?"


"जी सोसाइटी के सेक्रेटरी जगत भवनानी का फोन मेरे पास पहुँचा। मेरा ऑफिस दूर है। पहुँचने में समय लगता। इसलिए मैंने अपनी पत्नी रेनू को फोन कर दिया कि जल्दी से घर पहुँचो।"


रेनू अपनी आँखें पोंछती हुई बोली।


"सुंदर का फोन मिलते ही मैं फौरन घर भागी। वहाँ पहुँची तो पता चला कि उसे अस्पताल ले आए हैं। वह आई.सी.यू. में है।"


कहकर रेनू रोने लगी। सुंदर उसे शांत कराने लगा। इंस्पेक्टर शारिक ने उन्हें दिलासा दिया और लौट गए।
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दो दिन तक जूझने के बाद साकेत ने दम तोड़ दिया। इंस्पेक्टर शारिक को जब यह पता चला तो वह बहुत दुखी हुआ। साकेत पढ़ने  लिखने में बहुत होशियार था। पढ़ाई के अलावा उसे ड्रॉइंग का भी शौक था। साकेत के पिता सुंदर का सिनेटरी का व्यापार था। माँ रेनू भी इंटीरियर डेकोरेशन का काम करती थीं। साकेत उनकी इकलौती संतान था। इंस्पेक्टर शारिक को समझ नहीं आ रहा था कि आखिर इतना छोटा बच्चा ऐसा कदम क्यों उठाएगा। शारिक ने उसके स्कूल में बात की थी। उसके सहपाठियों, अध्यापकों सभी का कहना था कि वह बहुत अच्छा बच्चा था। हाँ बहुत अधिक बोलता नहीं था। लेकिन सभी से उसका व्यवहार अच्छा था।
जाँच से यह बात सामने आई थी कि साकेत भी वह ऑनलाइन गेम खेलता था जो आजकल बच्चों को आत्महत्या के लिए उकसा रहा था। शारिक सोंचने लगा  कि आखिर वह क्या कारण है कि मासूम बच्चे इस खतरनाक गेम का शिकार हो रहे हैं। उसकी बेटी सना भी साकेत की उम्र की ही थी। उसका हंसता हुआ चेहरा शारिक की आँखों में घूम गया। अचानक एक विचार मन में आया। क्या उसकी बेटी सना भी ऐसा कदम उठा सकती है। मन में यह खयाल आते ही शारिक सिहर उठा।
वैसे तो आत्महत्या का यह केस बंद हो गया था। लेकिन शारिक व्यक्तिगत तौर पर उन कारणों का पता लगाना चाहता था जिनके चलते साकेत इस जानलेवा गेम के चंगुल में फंस गया। वह उस समस्या तक पहुँचना चाहता था जिससे बच्चे ऐसा कदम उठा रहे थे।
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लखानी दंपत्ति से अनुमति लेकर इंस्पेक्टर शारिक रविवार को उनके घर पहुँचा। उसे ड्राइंगरूम में बैठाते हुए सुंदर ने पूँछा।


"कहिए इंस्पेक्टर शारिक आप हमसे क्या जानना चाहते हैं।"


"मैं वह वजह जानना चाहता हूँ जिसके कारण साकेत ने इस छोटी सी उम्र में खुद की जान ले ली।"


"अब इससे क्या होगा। हमारा बेटा तो लौटेगा नहीं। यह सब उस मनहूस गेम के कारण हुआ है।" रेनू गुस्से से बोली।


"जी मिसेज़ लखानी मैं जानता हूँ कि आपको जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई नहीं हो सकती है। पर यही तो मुझे जानना है कि साकेत ऐसे खतरनाक गेम के चक्कर में कैसे पड़ गया। साकेत तो वापस नहीं आ सकता किंतु हम और बच्चों को इस दलदल से बचा सकते हैं।"


सुंदर ने रेनू को सांत्वना दी जो रो रही थी। वह शारिक से बोला।
"आपका कहना सही है। कहिए हम आपकी किस प्रकार मदद कर सकते हैं।"


शारिक कुछ देर सोंचने के बाद बोला।


"आप लोगों के साकेत से कैसे संबंध थे?"


सवाल सुन कर रेनू कुछ उत्तेजित हो गई।


"इसका क्या मतलब है कि कैसे संबंध थे। वैसे ही थे जैसे माता पिता के बच्चों से होते हैं। हम उसे चाहते थे। उसकी हर मांग पूरी करते थे।"


"बुरा मत मानिए मिसेज़ लखानी। मेरा मतलब था कि क्या आप दोनों उसे वह समय दे पाते थे जो उसे चाहिए था।"


शारिक की बात सुन कर पति पत्नी एक दूसरे को देखने लगे। सुंदर ने कहा।


"देखिए यह सही है कि हम दोनों अपने काम में व्यस्त रहते हैं। इतना समय नहीं निकाल पाते थे। एक दो बार उसने यह कहा भी था। हमने उसे समझा दिया था। आखिरकार यह सब हम उसके भविष्य के लिए ही कर रहे थे।"


शारिक कुछ गंभीर हो गया। कुछ सोंच कर फिर बोला।


"सुना है कि वह बहुत कम बोलता था। क्या शुरू से ही ऐसा था?"


इस बार रेनू ने जवाब दिया।


"जी शुरू में बहुत बोलता था। लेकिन इधर दो तीन सालों से अचानक गंभीर हो गया। हमें लगा कि बड़ा हो रहा है इसलिए स्वभाव बदल रहा है।"


"इन दो तीन सालों में ऐसा क्या हुआ था?"


"दरअसल इसी समय मैंने अपना बिज़नेस और बढ़ाया था। रेनू ने भी अपना इंटीरियर डेकोरेशन का काम दोबारा आरंभ किया था। साकेत के जन्म के बाद उसने अपना काम बंद कर दिया था। यही कारण था कि हम दोनों को अपने काम पर अधिक समय देना पड़ता था।"


"क्या मैं साकेत का कमरा देख सकता हूँ?"


"जी ज़रूर।" रेनू ने मरियम को आवाज़ देकर शारिक को साकेत के कमरे में ले जाने को कहा।


साकेत के कमरे में पहुँच कर शारिक उसकी चीज़ों को देख रहा था। सब कुछ करीने से लगा हुआ था। शारिक ने मरियम से पूँछा।


"तुम ही साकेत का कमरा साफ करती थीं।"


"नहीं सर मैं तो बस फर्श साफ करती थी। बाकी तो बाबा खुद ही अपना सामान संभाल कर रखते थे। साहब को अनुशासन पसंद है।"


शारिक ने साकेत की ड्राइंगबुक देखी। बहुत सुंदर चित्र बनाए थे उसने। शारिक ने स्टडी टेबल का ड्रॉर खोला। किताबों के नीचे दबी एक डायरी दिखाई पड़ी। उसने एक दो पन्ने पलटे। साकेत ने ही लिखे थे।
शारिक बाहर आकर बोला।


"आप लोगों को पता है कि साकेत डायरी लिखता था। मुझे उसकी स्टडी टेबल से मिली है। यदि इजाज़त दें तो मैं घर ले जाकर पढ़ लूँ।"


"जी हमें तो डायरी के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। आप ले जाइए।" सुंदर ने अनुमति दे दी।
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शारिक घर पहुँचा तो उसकी बीवी रुबीना ने पूँछा।


"इतनी देर कहाँ लगा दी आपने? क्या उसी बच्चे के घर गए थे। आप तो हर केस की जड़ में घुसना चाहते हैं।"


"वह तो मेरा काम है। पर इस केस में मैं व्यक्तिगत रूप से जुड़ा हूँ। हमारी भी तो एक बच्ची है। वैसे है कहाँ वह?"


तभी सना भीतर से आकर उससे लिपट गई।


"अंदर थी अब्बू। पढ़ाई कर रही थी।"


शारिक ने प्यार से उसका माथा चूम कर कहा।


"खूब मन लगा कर पढ़ो। कोई समस्या हो तो हम लोगों को बताओ।"


खाना खाकर शारिक साकेत की डायरी लेकर पढ़ने लगा। साकेत ने अपने मन की हर बात उसमें दर्ज़ की थी। पढ़ते हुए एक पन्ने पर शारिक की नज़र पड़ी।


'पापा कहते हैं कि अब तुम बड़े हो गए हो। समझदार बनो। मैं तो हमेशा समझदारी से काम लेता हूँ। पर क्या किसी के सामने पापा को गले लगाना गलत है।'


शारिक आगे पढ़ने लगा। साकेत ने अपने अकेलेपन का ज़िक्र किया था। एक जगह लिखा था।


'मम्मी ने मुझे जो नया टैब दिया है वह बहुत अच्छा है। मैंने इस पर खूब गेम्स खेलता हूँ। गेम खेलते हुए मैं उसमें खो जाता हूँ। मुझे अकेलापन नहीं लगता है।'


कुछ और पन्नों के बाद लिखा था।


'यह नया गेम बहुत अच्छा है। मैंने सभी टॉस्क पूरे कर लिए। देखो आगे क्या मिलता है।'


उसके बाद नए गेम के बारे में कुछ और बातें थीं। जिन्हें पढ़ कर महसूस हो रहा था कि साकेत परेशान था। शारिक ने उस दिन का पन्ना पढ़ा जिस दिन साकेत टेरेस से कूदा था।


'मरियम आंटी बाहर गई हैं। मैं अब यह दुनिया छोड़ कर जाने वाला हूँ। मेरा मरना ज़रूरी है। नहीं तो मम्मी पापा की जान को खतरा होगा।
मैं जा रहा हूँ।
लव यू मम्मी पापा'


शारिक की आँखों से आंसू बहने लगे। वह सोंचने लगा। अपने अंतिम समय में कितनी पीड़ा में था वह मासूम। कमाल है किसी को उसका दर्द नहीं दिखा।


अगले दिन जब वह डायरी लौटाने गया तो साकेत के माता पिता को सारी बातें बताईं। सुन कर दोनों रोने लगे। उन्हें अपनी लापरवाही पर पछतावा हो रहा था।
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आज साकेत की बरसी थी। सोसाइटी के कम्यूनिटी हॉल में सब जमा थे। सभी ने कुछ क्षण मौन रख कर साकेत को श्रृद्धांजली दी। उसके बाद रेनू ने बोलना शुरू किया।


"आज मेरे बेटे को इस दुनिया से गए एक साल हो गया। इस एक साल में हम खूब रोए, पछताए। लेकिन कुछ भी हमारे बेटे को वापस नहीं ला सकता था। बस हम पति पत्नी अपनी गलती का एहसास कर सकते थे। वह हमें हो गया। इसीलिए आज हमने आपको यहाँ बुलाया है ताकि आप वह गलती ना करें जो हमने की।
आप सभी हमारी तरह अपने बच्चों के लिए जीते हैं। उनके भविष्य के लिए रात दिन मेहनत करते हैं। उन्हें सब कुछ देने की कोशिश करते हैं। लेकिन अपना थोड़ा सा समय नहीं दे पाते हैं। उसकी भरपाई करने के लिए हम उन्हें जो मोबाइल फोन, टैब या अन्य गैजेट देते हैं वह उन्हें इंटरनेट की दुनिया में ले जाती है। यह दुनिया उन्हें ज्ञान तो देती है किंतु इसमें कुछ ऐसी गलियां भी हैं जो उन्हें भटका देती हैं। कई बार ऑनलाइन गेम्स की यह गलियां उन्हें वहाँ ले जाती हैं जहाँ से वह लौट नहीं पाते हैं। यह हमारे लिए बहुत दुखदाई होता है।
मैं यह नहीं कहती कि बच्चों के लिए आप अपने कैरियर या सपनों की कुर्बानी दें। आप उन्हें भी साथ लेकर चलें। लेकिन उसमें इतना ना उलझ जाएं कि बच्चों को बिल्कुल भी वक्त ना दे सकें। बच्चों को दुनिया में लाना पति पत्नी का साझा निर्णय है। अतः उन्हें भावनात्मक रूप से मज़बूत बनाना भी हमारी सम्मिलित ज़िम्मेदारी होती है।'


रेनू की बात पर सभी अभिभावक मन ही मन चिंतन कर रहे थे। बहुतों की आँखें नम थीं। रेनू और सुंदर ने भी मन में अपने बेटे से मांफी मांगी। उन्हें लगा कि जैसे साकेत ने उन्हें माफ भी कर दिया।

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