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दोस्त

               
                  
बाल मनोचिकित्सक अवतार सिंह ने आठ वर्षीय शुभ को प्यार से कुर्सी पर बैठाया। उस नन्हें से बच्चे का कोमल मन कितना आहत था वह जानते थे। अवतार सिंह उसके मन के घाव भरने का प्रयास कर रहे थे।


"नाम क्या है बेटा तुम्हारा...।"


शुभ शांत बैठा रहा। वह इस तरह निश्चल बैठा था जैसे कुछ सुना ही ना हो। अवतार सिंह ने उससे बात करने की एक और कोशिश की।


"बेटा मुझसे बात करो।  तुम मुझे अपना दोस्त समझो...."


यह बात सुनते ही शुभ कुर्सी से उतर कर अपनी मम्मी के पास आ गया। जानकी उसे अपनी गोद में बैठा कर शांत करने लगी। अवतार सिंह ने जानकी की तरफ प्रश्न भरी निगाह से देखा।


"सर वह शैतान भी कहता था कि वह इसका दोस्त है।"


अवतार सिंह समझ गए कि उस मासूम का विश्वास बुरी तरह कुचल चुका है। उन्हें पहले घायल विश्वास को ठीक करना पड़ेगा।  उन्होंने अपने सहायक को बुला कर शुभ को बाहर ले जाने को कहा।


"जानकी जी शुभ के मन में गहरी चोट लगी है। हमें बहुत ही धैर्य व प्रेम से काम लेना पड़ेगा। पहले तो मुझे उसका विश्वास जीतना पड़ेगा। यह एक कठिन काम होगा।"


"जी सर मैं समझ रही हूँ।"


"तो आपको शुभ को लेकर समय समय पर यहाँ आना होगा।"


"जी आप जब बुलाएंगे मैं शुभ को लेकर आ जाऊँगी।"


जानकी अगले सेशन की तारीख लेकर शुभ के साथ लौट गई।


जानकी आज उस दिन को याद कर अफसोस कर रही थी जब दस माह पहले उसके दरवाज़े की घंटी बजी थी। उस मनहूस घड़ी ने उसके बच्चे की हंसी चुरा ली थी।
उस दिन जब उसने दरवाज़ा खोला तो सामने वह खड़ा था।


"जी मैंने आपके घर पर 'टू लेट' की तख्ती लगी देखी। मुझे किराए पर मकान चाहिए था। क्या मैं देख सकता हूँ।"


"जी ऊपर के हिस्से में दो कमरे का सेट है।"


"चलेगा, बस आप एक बार दिखा दीजिए।"


जानकी ने कुछ क्षण सोंच कर कहा।


"सीढ़ियां बाहर से हैं। उधर ताला लगा है। मैं चाभी लेकर आती हूँ।"


मकान दिखाने के बाद जब वह आगे की बात करने नीचे आए तो जानकी ने पूँछा।


"आपका नाम क्या है? कहाँ काम करते हैं?"


"मेरा नाम बलराज सिंह है। मैं एक प्राईवेट बैंक में काम करता हूँ।"


जानकी आगे कुछ पूँछती तब तक बलराज की नज़र पर्दे के पीछे से झांकते शुभ पर पड़ी। उसने इशारे से उसे अपने पास बुलाया।


"क्या नाम है तुम्हारा?"


"शुभ..."


"बहुत सुंदर नाम है। मैं बलराज हूँ।"


बलराज ने उसकी तरफ हाथ बढ़ा दिया। शुभ ने भी उत्साह के साथ उससे हाथ मिलाया।


"हम तो दोस्त बन गए शुभ।"


उसकी बात सुनकर शुभ मुस्कुरा दिया।


"तो किराया और बिजली वगैरह का बता दीजिए।"


जानकी की तरफ मुड़ कर बलराज ने कहा।


"देखिए मि. बलराज बात यह है कि मैं जानना चाहती थी कि क्या आप शादीशुदा हैं। शुभ के पापा नहीं हैं। इसलिए मैं चाहती थी कि परिवार वाले को ही मकान दूँ।"


"जी शादी तो मैंने अबतक नहीं है। किंतु हाँ परिवार है मेरा। मम्मी हैं पापा हैं और एक छोटा भाई है। सब घर पर हैं। मैं नौकरी के सिलसिले में यहाँ आया हूँ।"


"मेरा वो मतलब नहीं था। दरअसल आप अकेले रहेंगे तो अपने हिसाब से आएंगे जाएंगे। मुझे तकलीफ होगी। आप मेरी बात समझ रहे होंगे..."


"जी मैं समझ रहा हूँ। लेकिन आप परेशान ना हों। मुझे देर रात तक बाहर रहने की आदत नहीं है। काम के बाद सीधे घर। मेरे दोस्त यार भी अधिक नहीं हैं। मुछसे आपको किसी तरह की तकलीफ नहीं होगी।"


जानकी सोंच में पड़ गई। बलराज शुभ से बात करने लगा।


"हम तो दोस्त बन गए। अब अगर तुम्हारी मम्मी मकान दे दें तो हम लोग खूब मज़ा करेंगे।"


उसकी बात सुनकर शुभ ने भी उसकी सिफारिश की।


"देखिए बात यह है कि आपके घर से मुझे बैंक आने जाने में सुविधा रहेगी। इसीलिए चाह रहा था कि आप मुझे मकान दे दें। आप चाहें तो मैं अपने घर वालों से आपकी बात करवा दूँ। आप तसल्ली कर लीजिए।"


जानकी को अब तक की बातचीत से बलराज ठीक लगा था। उसने सोंचा यदि बाद में कुछ ठीक नहीं लगा तो मकान खाली करने को कह देगी।


"घर वालों से बात करने की ज़रूरत नहीं। पर एक बात है। जब मैं कहूँ आप मकान खाली कर देंगे। किराया समय पर देंगे।"


"जी आप निश्चिंत रहें आपको मुझसे कोई शिकायत नहीं होगी।"


बलराज ने उसी समय एडवांस दे दिया। दो दिन बाद अपने सीमित सामान के साथ रहने आ गया। जानकी ने तय कर लिया था कि वह किराए के अलावा उससे अधिक मतलब नहीं रखेगी। लेकिन शुभ तो पहली ही मुलाकात से उसकी तरफ खिंच गया था। अक्सर उससे बातें करता रहता था। बलराज भी शुभ के साथ खेलना बहुत पसंद करता था। छुट्टी के दिन वह शुभ को ऊपर ही बुला लेता था। अपने लैपटॉप पर उसके साथ गेम्स खेलता था।


जानकी ने एक दो बार उसे रोका तो शुभ उदास हो गया। जानकी समझ रही थी कि वह बलराज में अपने उस पिता की छवि तलाशता है जो अब उसके साथ नहीं थे। अतः उसने बहुत अधिक विरोध नहीं किया।


बलराज शुभ के साथ हंसता खेलता था। किंतु उसने इसकी आड़ में कभी सीमा लांघने की कोशिश नहीं की। वह कभी भी जानकी से बिना मतलब बात करने या घुलने मिलने का प्रयास नहीं करता था। इसलिए जानकी ने भी शुभ को उससे मिलने से मना करना उचित नहीं समझा।


तीन महीने बीत गए। बलराज ने शिकायत का कोई मौका नहीं दिया। समय पर किराया देता था। समय का खयाल रखता था। शुभ के अतिरिक्त अपने काम से काम रखता था। जानकी निश्चिंत हो गई। वह वर्क फ्राम होम के अंतर्गत काम करती थी। एक दो अवसरों को छोड़ कर घर से ही काम करती थी। पर इस बार उसकी कंपनी ने उसे एक दिन के सेमीनार में भाग लेने के लिए दिल्ली जाने को कहा।


जब कभी भी उसे बाहर जाना होता था तब संभव होने पर वह शुभ को भी साथ ले जाती थी। अन्यथा उसे अपने एक रिश्तेदार के घर छोड़ जाती थी। शुभ के टेस्ट चल रहे थे। उसे ले जाना संभव नहीं था। अतः वह शुभ को अपने रिश्तेदार के घर छोड़ने वाली थी। लेकिन शुभ उनके घर जाना नहीं चाहता था। वह उदास था।


"समझो शुभ मैं तुम्हें घर में अकेला तो नहीं छोड़ सकती हूँ। थोड़ा एडजस्ट कर लेना वहाँ। फिर एक दिन की ही तो बात है।"


"तो फिर मैं बलराज अंकल के साथ रह जाता हूँ। उनके साथ बहुत मज़ा आता है।"


उसकी बात सुनकर जानकी गंभीर हो गई।


"नहीं शुभ यह नहीं हो सकता। तुमको समझना पड़ेगा कि वह हमारे किराएदार हैं। कुछ महीनों में मकान खाली कर देंगे। मुझे कोई बहस नहीं करनी है। मैं तुम्हें मौसी के घर ही छोड़ कर जाऊँगी।"


बलराज ने जब शुभ से उसकी उदासी का कारण पूँछा तो उसने सब बता दिया। मौका निकाल कर उसने जानकी से इस बारे में बात की।


"आप शुभ को मेरे पास छोड़ कर जा सकती हैं।"


"आप परेशान ना हों। मैं उसे अपनी मौसी के पास छोड़ दूँगी।"


"परेशानी की कोई बात नहीं। पर शुभ कुछ उदास था।"


"उसे मैं समझा लूँगी। फिर आपको भी तो बैंक जाना होगा।"


"वह सब तो मैं मैनेज कर लूँगा। बस अगर आप यकीन कर सकें तो।"


शुभ को जब पता चला कि बलराज ने इस सिलसिले में उसकी मम्मी से बात की थी तो वह ज़िद पर अड़ गया कि वह उसके साथ ही रहेगा। जानकी नहीं चाहती थी कि शुभ को बलराज के पास छोड़े। उसे लगने लगा था कि वह बहुत अधिक बलराज के समीप आ रहा है। कल यदि बलराज मकान खाली करेगा तो शुभ को बहुत तकलीफ होगी। लेकिन उसकी मौसी का फोन आ गया कि उनकी तबीयत बिगड़ गई है। अतः वह शुभ को संभाल नहीं पाएंगी। कोई और चारा ना देख जानकी को बलराज के साथ ही शुभ को छोड़ना पड़ा।


सुबह सेमीनार में शामिल होकर जानकी शाम की फ्लाइट से घर लौट आई। उसे शुभ कुछ उदास लगा। जानकी ने पूँछा तो 'कुछ नहीं' कह कर शुभ ने टाल दिया। पहले भी जब वह शुभ को छोड़ कर जाती थी तो दो एक दिन उसका मूड खराब रहता था। अतः उसने कोई विशेष ध्यान नहीं दिया।


अगले दिन बहुत सुबह ही बलराज ने उसे बताया कि वह किसी बहुत आवश्यक काम से घर जा रहा है। उसके साथ दो बैग थे। उसने बताया कि बहुत सा सामान जो उसके काम नहीं आता उसे घर छोड़ने के लिए ले जा रहा है। शुभ जब उठा तो तैयार होकर अपने स्कूल चला गया।


एक हफ्ता बीत गया किंतु शुभ की उदासी कम नहीं हुई। जानकी को चिंता होने लगी। उसने सोंचा कि शायद बलराज उससे बिना मिले चला गया इसलिए उदास हो। वह देख रही थी कि अब शुभ बलराज के बारे में बात भी नहीं करता है। बलराज भी दो दिनों के लिए कह गया था पर हफ्ते भर बाद भी नहीं लौटा। पता नहीं क्या बात है जानने के लिए जानकी ने शुभ से बात करनी शुरू की।


"मैं इसीलिए कहती थी बेटा। देखो तुम बलराज अंकल के जाने से कितने दुखी हो।"


"आप उसे निकाल दीजिए। वह गंदा आदमी है।"


शुभ ने क्रोध से फुफकारते हुए कहा। उसके गुस्से और ढंग को सुन जानकी सन्न रह गई।


"क्या हुआ बेटा? तुम मुझे खुल कर बताओ कि क्या किया उसने?"


शुभ कुछ देर मौन बैठा रहा। उसकी आँखों से आंसू झर रहे थे। जानकी समझ गई कि कोई गंभीर बात है। उसने शुभ के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा।


"बेटा बिना संकोच के सारी बात बताओ।"


अपनी माँ से आश्वासन पाकर शुभ ने जो बताया उसे सुन कर जानकी क्रोध से उबलने लगी।


"बेटा तुमने उसी दिन मुझे सब कुछ क्यों नहीं बताया?"


"उस गंदे आदमी ने धमकी दी थी कि वह आपको और मुझे मार डालेगा। मैं डर गया था।"


शुभ रोते हुए बोला।


जानकी उसे सीने से लगा कर रोने लगी। मन में तूफान उठ रहा था। कैसे वह उस दुष्ट को समझ नहीं पाई। उसे अपनी सबसे अनमोल चीज़ दे बैठी। शुभ उसमें पिता की तलाश करता था। किंतु वह शैतान उसके तन से खेल कर मन को कभी ना भरने वाला घाव दे गया।


जानकी ने हार नहीं मानी। सारी बात पुलिस को बता दी। पुलिस की जाँच में पता चला कि उसकी हर बात झूठी थी। पुलिस की बहुत कोशिशों के बाद वह पकड़ा जा सका।


बलराज को तो उसके किए की सज़ा मिली थी। पर मासूम शुभ को बिना अपराध के ही सज़ा मिल रही थी। फूल की तरह हंसता बच्चा अपने मन की पीड़ा से कुम्हला गया था। किसी ने जानकी को मनोचिकित्सक अवतार सिंह के बारे में बताया। वह शुभ को उनके पास ले गई थी। उसने तय कर लिया था कि वह बिना टूटे अपने बच्चे को इस पीड़ा से बाहर लाकर ही रहेगी।


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