दिल्ली के इस प्रतिष्ठित कॉलेज में दाखिला पाकर स्नेहा बहुत खुश थी। कॉलेज का पहला दिन कैंपस में घूमने एक दूसरे से जान पहचान करने में ही बीत गया।
जब वह हॉस्टल आई तो अकेलेपन ने उसे घेर लिया। उसे अपने परिवार की याद आने लगी। सुबह जब उसकी रूममेट आई तो वह कॉलेज के लिए निकल रही थी। उससे बातचीत तो नहीं हुई किंतु उसके हावभाव से लगा था कि वह किसी अमीर घर से है और ज्यादा मिलना जुलना पसंद नहीं करती है।
वह अभी मुंह हाथ धोकर बैठी ही थी कि उसकी रूममेट आ गई। वह किसी से फोन पर बात कर रही थी। स्नेहा भी अपने फोन में लग गई।
"हैलो....मैं सबरीना हूँ। सुबह हमारी बात नहीं हो पाई।"
स्नेहा की रूममेट उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी। स्नेहा ने भी अपना परितय दिया। पहले कुछ औपचारिक बाते हुईं। लेकिन थोड़ी ही देर में दोनों खुल कर बात कर रही थीं।
स्नेहा ने महसूस किया कि सबरीना की एक मुस्कान ने कितनी जल्दी अजनबीपन को खत्म कर दिया।
जब वह हॉस्टल आई तो अकेलेपन ने उसे घेर लिया। उसे अपने परिवार की याद आने लगी। सुबह जब उसकी रूममेट आई तो वह कॉलेज के लिए निकल रही थी। उससे बातचीत तो नहीं हुई किंतु उसके हावभाव से लगा था कि वह किसी अमीर घर से है और ज्यादा मिलना जुलना पसंद नहीं करती है।
वह अभी मुंह हाथ धोकर बैठी ही थी कि उसकी रूममेट आ गई। वह किसी से फोन पर बात कर रही थी। स्नेहा भी अपने फोन में लग गई।
"हैलो....मैं सबरीना हूँ। सुबह हमारी बात नहीं हो पाई।"
स्नेहा की रूममेट उसकी तरफ देख कर मुस्कुरा रही थी। स्नेहा ने भी अपना परितय दिया। पहले कुछ औपचारिक बाते हुईं। लेकिन थोड़ी ही देर में दोनों खुल कर बात कर रही थीं।
स्नेहा ने महसूस किया कि सबरीना की एक मुस्कान ने कितनी जल्दी अजनबीपन को खत्म कर दिया।
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