उस बड़े से घर के बरामदे में रामरती फर्श पर सकुचाई सी बैठी थी। निगाहें दरवाज़े पर लगी थीं। किसी भी समय उसके कलेजे का टुकड़ा उसकी बच्ची बाहर निकल कर आएगी और उससे लिपट जाएगी। ।
दिल पर पत्थर रख कर उसने अपनी बिटिया को यहाँ काम करने के लिए भेजा था। क्या करती परिस्थितियां कभी गरीब के साथ नहीं होती हैं।
दरवाज़ा खुला उसकी बच्ची उसके सामने खड़ी थी। रामरती का दिल धक् से रह गया। गरीबी और भूख में भी जो खिवखिला कर हंसती थी उसके मुर्झाए चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान थी।
दिल पर पत्थर रख कर उसने अपनी बिटिया को यहाँ काम करने के लिए भेजा था। क्या करती परिस्थितियां कभी गरीब के साथ नहीं होती हैं।
दरवाज़ा खुला उसकी बच्ची उसके सामने खड़ी थी। रामरती का दिल धक् से रह गया। गरीबी और भूख में भी जो खिवखिला कर हंसती थी उसके मुर्झाए चेहरे पर एक फीकी सी मुस्कान थी।
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