महेंद्र शांती से बैठा अस्त होते हुए सूरज को देख रहा था। कितने समय के बाद उसने शाम को महसूस किया था। अन्यथा तो आपाधापी में पूरा दिन कैसे निकल जाता था पता ही नहीं चलता था। आसपास के शांत मनोरम वातावरण से उसका मन प्रफुल्लित था। आज फिर वह एक नन्हा बच्चा बन कर माँ प्रकृति की गोद में बैठा कौतुहल से उसकी खूबसूरती निहार रहा था।
तभी उसका चचेरा भाई वंश उसके पास आकर बोला।
"यार कैसी बोरिंग जगह पर ले आए हो। कुछ है ही नहीं यहाँ। नेटवर्क भी गायब है। शाम बर्बाद हो गई।"
महेंद्र को लगा जैसे वंश ने उसे माँ की गोद से जबरन खींच कर निकाल दिया हो।
तभी उसका चचेरा भाई वंश उसके पास आकर बोला।
"यार कैसी बोरिंग जगह पर ले आए हो। कुछ है ही नहीं यहाँ। नेटवर्क भी गायब है। शाम बर्बाद हो गई।"
महेंद्र को लगा जैसे वंश ने उसे माँ की गोद से जबरन खींच कर निकाल दिया हो।
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