आशिका बालकनी में खड़़ी थी. उसने एक निगाह पौधों पर डाली. कई पौधे सूख गए थे. आजकल पौधों पर भी ध्यान नही दे पा रही थी. वह कुर्सी पर बैठ गई. मन बहुत उद्विग्न था.
उसके और अमन के बीच झगड़े बढ़ते जा रहे हैं. पहले भी झगड़े होते थे किंतु कभी कभार वह भी किसी बड़े मसले पर. जल्द ही दोनों सुलह भी कर लेते थे. अब तो बेवजह झगड़े होने लगे हैं. मनमुटाव बढ़ता ही जा रहा है.
तीन साल पहले दोनों की मुलाकात एक दोस्त की पार्टी में हुई थी. कुछ औपचारिक बाते हुईं. अमन एक ट्रैवेल एजेंसी चलाता था और आशिका एक विज्ञापन एजेंसी में क्रिएटिव हेड थी.
अमन को अपनी ट्रैवेल एजेंसी का विज्ञापन बनवाना था. अगले दिन वह उसके दफ्तर पहुँच गया. उनके बीच की मुलाकातें बढ़ने लगीं. औपचारिक मुलाकातें डेट में बदल गईं. एक वर्ष तक डेट करने के बाद दोनों ने साथ होने का फैसला कर लिया.
प्रारंभ में सब कुछ बहुत सुखद था. दोनों को एक दुसरे का साथ बहुत पसंद था. घर की ज़िम्मेदारियां दोनों ने आपस में बांट रखी थीं. एक की ज़रूरत का खयाल दूसरा रखता था.
फिर अचानक जाने क्या हुआ दोनों के बीच की दूरियां बढ़ने लगीं. दोनों एक दूसरे की कमियां देखने लगे. बात बात पर एक दूसरे पर तोहमतें लगाने लगे. एक छत के नीचे रहते हुए भी दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी बन गए थे. अब तो संदेह होने लगा था कि कभी एक दूसरे को जाना भी था या नही.
आज भी छोटी सी बात पर दोनों में कहासुनी हो गई. आशिका जब घर लौटी तो देखा कि अमन की जींस सोफे पर पड़ी थी. बेडरुम में बैठा वह अपने सोशल एकांउट पर किसी से चैट कर रहा था. आशिका ने उससे पूंछा तो उसने बड़ी लापरवाही से जवाब दिया " कौन सी बहुत बड़ी बात हो गई. जब उठूंगा तो रख दूंगा. " उसके इस तरह बोलने से आशिका को भी गुस्सा आ गया " बात यह नही है कि तुम रख दोगे. बात यह है कि कब तुम ज़िम्मेदारी से काम करना सीखोगे. " उसकी इस बात ने जैसे आग में घी डाल दिया " ये बात बात पर तुम मुझे ज़िम्मेदारी का लेक्चर मत दिया करो. मैं अपनी ज़िम्मेदारियां पहचानता हूँ. "
अमन ने गुस्से में कहा.
" घर को व्यवस्थित रखना भी ज़िम्मेदारी का हिस्सा है. " आशिका ने नहले पर दहला मारा. कुछ क्षणों तक उसे घूरने के बाद अमन बोला " यह घर है जेल नही. जेलर की तरह मुझ पर हुक्म ना चलाया करो. मुझे भी मेरा स्पेस चाहिए. " अपनी बात कह कर वह पैर पटकता हुआ घर से चला गया.
सामने रखी कॉफी ठंडी हो रही थी. उसने एक घूंट भरा और मन ही मन बुदबुदाई 'मेरा स्पेस'. अब दोनों के बीच एक लंबेचौड़े खालीपन के अतरिक्त बचा ही क्या है. दोनों इसके एक एक छोर पर खड़े हैं. एक दूसरे की तरफ उंगली उठाए.
दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई. आशिका भीतर आ गई. बिना कुछ बोले अमन बेडरूम में चला गया. आशिका हॉल में ही खड़ी रही. अमन जब बाहर आया तो उसके हाथ में डफल बैग था. बाहर निकलने से पहले आशिका से बोला " कुछ दिनों के लिए मैं अपने दोस्त के घर रहने जा रहा हूँ. शायद हमारे रिश्ते के लिए यही सही है. "
आशिका स्तब्ध रह गई. क्या यही उनके रिश्ते का अंजाम है. लाख कोशिश के बाद भी आंसू रुके नही.
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उसके और अमन के बीच झगड़े बढ़ते जा रहे हैं. पहले भी झगड़े होते थे किंतु कभी कभार वह भी किसी बड़े मसले पर. जल्द ही दोनों सुलह भी कर लेते थे. अब तो बेवजह झगड़े होने लगे हैं. मनमुटाव बढ़ता ही जा रहा है.
तीन साल पहले दोनों की मुलाकात एक दोस्त की पार्टी में हुई थी. कुछ औपचारिक बाते हुईं. अमन एक ट्रैवेल एजेंसी चलाता था और आशिका एक विज्ञापन एजेंसी में क्रिएटिव हेड थी.
अमन को अपनी ट्रैवेल एजेंसी का विज्ञापन बनवाना था. अगले दिन वह उसके दफ्तर पहुँच गया. उनके बीच की मुलाकातें बढ़ने लगीं. औपचारिक मुलाकातें डेट में बदल गईं. एक वर्ष तक डेट करने के बाद दोनों ने साथ होने का फैसला कर लिया.
प्रारंभ में सब कुछ बहुत सुखद था. दोनों को एक दुसरे का साथ बहुत पसंद था. घर की ज़िम्मेदारियां दोनों ने आपस में बांट रखी थीं. एक की ज़रूरत का खयाल दूसरा रखता था.
फिर अचानक जाने क्या हुआ दोनों के बीच की दूरियां बढ़ने लगीं. दोनों एक दूसरे की कमियां देखने लगे. बात बात पर एक दूसरे पर तोहमतें लगाने लगे. एक छत के नीचे रहते हुए भी दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी बन गए थे. अब तो संदेह होने लगा था कि कभी एक दूसरे को जाना भी था या नही.
आज भी छोटी सी बात पर दोनों में कहासुनी हो गई. आशिका जब घर लौटी तो देखा कि अमन की जींस सोफे पर पड़ी थी. बेडरुम में बैठा वह अपने सोशल एकांउट पर किसी से चैट कर रहा था. आशिका ने उससे पूंछा तो उसने बड़ी लापरवाही से जवाब दिया " कौन सी बहुत बड़ी बात हो गई. जब उठूंगा तो रख दूंगा. " उसके इस तरह बोलने से आशिका को भी गुस्सा आ गया " बात यह नही है कि तुम रख दोगे. बात यह है कि कब तुम ज़िम्मेदारी से काम करना सीखोगे. " उसकी इस बात ने जैसे आग में घी डाल दिया " ये बात बात पर तुम मुझे ज़िम्मेदारी का लेक्चर मत दिया करो. मैं अपनी ज़िम्मेदारियां पहचानता हूँ. "
अमन ने गुस्से में कहा.
" घर को व्यवस्थित रखना भी ज़िम्मेदारी का हिस्सा है. " आशिका ने नहले पर दहला मारा. कुछ क्षणों तक उसे घूरने के बाद अमन बोला " यह घर है जेल नही. जेलर की तरह मुझ पर हुक्म ना चलाया करो. मुझे भी मेरा स्पेस चाहिए. " अपनी बात कह कर वह पैर पटकता हुआ घर से चला गया.
सामने रखी कॉफी ठंडी हो रही थी. उसने एक घूंट भरा और मन ही मन बुदबुदाई 'मेरा स्पेस'. अब दोनों के बीच एक लंबेचौड़े खालीपन के अतरिक्त बचा ही क्या है. दोनों इसके एक एक छोर पर खड़े हैं. एक दूसरे की तरफ उंगली उठाए.
दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई. आशिका भीतर आ गई. बिना कुछ बोले अमन बेडरूम में चला गया. आशिका हॉल में ही खड़ी रही. अमन जब बाहर आया तो उसके हाथ में डफल बैग था. बाहर निकलने से पहले आशिका से बोला " कुछ दिनों के लिए मैं अपने दोस्त के घर रहने जा रहा हूँ. शायद हमारे रिश्ते के लिए यही सही है. "
आशिका स्तब्ध रह गई. क्या यही उनके रिश्ते का अंजाम है. लाख कोशिश के बाद भी आंसू रुके नही.
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