शारदा ने अभी अभी कुछ देर पहले ही स्काइप पर अपने पति से बात की. पूरे छह माह बीत नवीन को विदेश गए हुए. आरंभ में जब उसे पता चला की नवीन को उसकी कंपनी एक साल के लिए विदेश भेज रही है तो वह परेशान हो गई थी. कैसे अकेले रहेगी इतने दिन. इससे पहले जीवन में कभी अकेले नही रही थी. ऐसा नही था कि वह कोई दब्बू किस्म की महिला थी जिसे डर था कि वह बाहरी काम कैसे संभालेगी. शारदा एक इंटर कॉलेज में हिंदी विभाग की हेड थी. एक उभरती हुई लेखिका होने के कारण अक्सर ही साहित्यिक गोष्ठियों में जाती रहती थी. गृहस्ती से जुड़े बाहर के काम अधिकांशतः उसी पर थे.
दरअसल उसका पालन पोषण एक संयुक्त परिवार में हुआ था. ससुराल में भी प्रारंभिक दिनों में भरापूरा परिवार था जिसमें नवीन और उसके अलावा सास ससुर देवर थे. दो साल के भीतर ही उसमें उसका बेटा अनुभव भी शामिल हो गया. इतने लोगों के बीच उसे कभी मायके की कमी नही खली.
लेकिन देवर की शादी हो जाने पर उसने अलग गृहस्ती बसा ली. उसके बाद पहले सास और फिर एक साल के अंदर ही ससुर भी परलोक सिधार गए. पिछले वर्ष जब बेटा भी पढ़ाई के सिलसिले में बाहर चला गया तो वह और नवीन अकेले रह गए.
अब दोनों के पास एक दूसरे के लिए बहुत वक्त था. वह नवीन के साथ अपने लेखन के विषय में चर्चा करती थी. नवीन उसे अक्सर लेखन के लिए नए विषय सुझाते थे. उसके लिखे किसी भी लेख या कहानी पर सबसे पहली आलोचनात्मक प्रक्रिया नवीन की ही होती थी. कई बार तो शारदा नवीन से लड़ पड़ती थी "तुम्हें तो आदत है मेरे लेखन में कमी निकालने की. सब ठीक तो है."
नवीन हंस कर कहता "क्यों बिगड़ती हो. एक पाठक होने के नाते यदि मुझे कुछ अच्छा नही लगेगा तो मैं अवश्य कहूँगा."
शारदा भी जानती थी कि नवीन की टिप्पणियां सही होती हैं. अतः उसके सुझावों को मान कर आवश्यक सुधार कर देती थी. शिकायत तो वह इसलिए करती थी कि इस नोंक झोंक मेें उसे आनंद आता था.
इन दिनों में वह नवीन से जितनी नज़दीकी महसूस करने लगी थी पहले कभी नही की थी. पारिवारिक ज़िम्मेदारियों में उलझे दोनों एक दूसरे के साथ बहुत कम वक्त बिता पाते थे. ऐसे में कभी खुल कर बात चीत का मौका नही मिला. आपस में प्रेम था किंतु खुल कर उसका इज़हार नही कर पाए. अतः अब नवीन के साथ बिताया हर एक पल उसके लिए अनमोल था.
जब नवीन ने उसे कंपनी द्वारा विदेश भेजे जाने की बात बताई तो पहले तो उसने साफ मना कर दिया "ऐसे कैसे चले जाओगे. मैं अकेली कैसे रहूँगी."
"समझने की कोशिश करो शारदा. यह ट्रेनिंग प्रोग्राम बहुत महत्वपूर्ण है. मेरे कैरियर को बहुत फायदा होगा इससे. कंपनी ने मेरे अतिरिक्त सिर्फ एक और को ही इसके लिए चुना है."
उसकी दुविधा को देख कर नवीन ने समझाया "सिर्फ एक साल की ही तो बात है. फिर इंटरनेट के ज़माने में स्काइप पर आमने सामने बात कर सकते हैं. यह एक साल तो देखते देखते बीत जाएगा."
शारदा अपने स्वार्थ के लिए नवीन को मिले इतने अच्छे मौके को गवांना नही चाहती थी. उसने जाने की इजाज़त दे दी. आरंभ में अकेले रहना बहुत खलता था. अब उसने अपने मन को समझा लिया था.
रोज़ ही नवीन से स्काइप के जरिए बात हो जाती थी. लेकिन थोड़ी देर हुई बात चीत उसे संतुष्ट नही कर पाती थी. बहुत कुछ ऐसा भी था जो वह अपने पति से उस समय नही कह पाती थी. वह नही बता पाती थी कि इस बिछोह से उसे कितनी तकलीफ होती है. वह नवीन परेशान नही करना चाहती थी. ऐसी तमाम बातें जो अनकही रह जाती थीं वह उस चांद से कर लेती थी जो हज़ारों मील दूर विदेश में उसके पति की खिड़की से भी दिखता था.
बलम परदेसी
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