सुनीता ने पहले अपने सामने रखे अदालती कागज़ को देखा फिर सामने बैठे अपने पति को देखा। सचमुच पहले से रंगत बहुत बदल गई थी। अब वह एक आई ए एस अधिकारी था। सुनीता ने अपने गहने दिए थे उसे कि शहर जाकर परीक्षा की सही तरह से तैयारी कर सके।
उसके पति ने समझाते हुए कहा।
"दस्तखत कर दो। घबराओ मत, उसके बाद भी मैं तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगा।"
तभी उसका फोन बजा। कॉलर का नाम देख कर चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह एक तरफ जाकर बात करने लगा।
"मेरे बिना जी नहीं लग रहा है।.....हाँ जल्दी लौटूँगा। बस मेरा काम हो जाए।"
बात करके जब वह सुनीता के पास आया तो उसने कागज़ उसके हाथ में थमा दिया।
"तो दस्तखत कर दिया...."
उसका पति कागज़ देखने लगा।
"नहीं किया। कम पढ़ी हूँ। बेवकूफ नहीं।"
सुनीता का चेहरा स्वाभिमान की आभा से जगमगा रहा था।
उसके पति ने समझाते हुए कहा।
"दस्तखत कर दो। घबराओ मत, उसके बाद भी मैं तुम्हारा पूरा खयाल रखूंगा।"
तभी उसका फोन बजा। कॉलर का नाम देख कर चेहरे पर मुस्कान आ गई। वह एक तरफ जाकर बात करने लगा।
"मेरे बिना जी नहीं लग रहा है।.....हाँ जल्दी लौटूँगा। बस मेरा काम हो जाए।"
बात करके जब वह सुनीता के पास आया तो उसने कागज़ उसके हाथ में थमा दिया।
"तो दस्तखत कर दिया...."
उसका पति कागज़ देखने लगा।
"नहीं किया। कम पढ़ी हूँ। बेवकूफ नहीं।"
सुनीता का चेहरा स्वाभिमान की आभा से जगमगा रहा था।
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