विश्वनाथ बाबू ने पार्क में कदम रखा तो पाया कि सुभाष अभी तक नहीं आए। उन्होंने मन में सोंचा कि आज मैंने सुभाष को हरा दिया। रोज़ मुझे देर से आने के लिए टोंकता था। इससे पहले कि वह अपनी खुशी दिखाते उनके मित्र ने आगे बढ़ कर गले लगा लिया।
"सुभाष कल रात हमें छोड़ कर चला गया।"
विश्वनाथ बाबू बेंच पर बैठ गए। कुछ देर दोनों दोस्त चुप रहे।
"ज़िंदगी में हर किसी के सामने यह मोड़ तो आना ही है। चलो चल कर उसे अंतिम विदाई दे आएं।"
यह कह कर वह चलने को उठ खड़े हुए।
"सुभाष कल रात हमें छोड़ कर चला गया।"
विश्वनाथ बाबू बेंच पर बैठ गए। कुछ देर दोनों दोस्त चुप रहे।
"ज़िंदगी में हर किसी के सामने यह मोड़ तो आना ही है। चलो चल कर उसे अंतिम विदाई दे आएं।"
यह कह कर वह चलने को उठ खड़े हुए।
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