उसका नाम आरती था। किन्तु न तो वह यह नाम किसी को बता सकती थी और न ही पुकारे जाने पर कोई जवाब दे सकती थी। कुदरत ने उसे बोलने और सुनने की शक्ति नहीं दी थी । कुदरत जब हमसे कुछ लेती है तो उसकी भरपाई भी करती है। बचपन से ही उसके मन में बहुत कुछ था जो वह दूसरों के साथ बाटना चाहती थी। वह कागज़ पर आकृतियाँ बनाकर अपने ह्रदय की बात लोगों तक पहुंचाती थी। जो भी उसके बनाये स्केच देखता वाह वाह कर उठता। जब वो बड़ी हुई तो कागज़ की जगह कैनवास पर रंगों से स्वयं को व्यक्त करने लगी।
वह उम्र के उस पड़ाव पर थी जब सब कुछ बहुत रंगीन लगता है। उसके कैनवास पर बिखरे रंग भी इन दिनों बहुत शोख थे। इन्हीं दिनों में उसने उस अकादमी में दाखिला लिया जो उसके जैसे लोगों के लिए ही बनायी गयी थी। यहीं उसकी मुलाक़ात अनुराग से हुई।
जब वह पहले दिन अकादमी पहुंची उस वक़्त अनुराग हाथ के इशारे से किसी से कुछ कह रहा था जिसे देख वह मुस्कुराने लगी। ठीक उसी वक़्त अनुराग की नज़र उस पर पड़ी। वह भी मुस्कुरा दिया। वहीँ से उन दोनों की दोस्ती शुरू हो गई।
वो दोनों एक दूजे से अपने मन की बात कहने लगे। नजदीकियां इतनी बढ़ गयीं कि दोनों एक दूसरे का अभिन्न अंग बन गए। झील के किनारे दोनों एक दूसरे के साथ बैठे रहते। उनकी आँखें उनके मन का आइना बन गयी थीं। सिर्फ आँखों में झांक कर ही एक दूसरे के मन की बात जान लेते थे। मुलाकात के बाद जब वो अपने अपने घर लौटते तो जैसे एक दूजे को अपने साथ ही ले जाते थे।
उस दिन भी आरती अनुराग से मिलने पहुंची। बहुत देर तक उसकी प्रतीक्षा करती रही किन्तु अनुराग नहीं आया। बहुत देर के बाद अपने उदास मन का बोझ उठाये हुए वह घर लौट गई। घर पर उसकी अन्तरंग सखी उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। माँ ने उसे देखते ही गले से लगा लिया और रोने लगी। आशंकाओं से उद्वेलित उसका मन और भी सहम गया।
उसकी आशंका सही साबित हुई। एक हादसे ने अनुराग को उससे छीन लिया था उसे लगा मानो चटकीले रंगों से रंगे उसके कैनवास पर किसी ने कालिख पोत दी हो।
घाटी में चारों तरफ बर्फ की सफ़ेद चादर जम गई थी। आरती के भीतर भी कुछ जम गया था। घंटों बैठी शून्य में कुछ निहारती रहती थी। घर में सभी बहुत परेशान थे। सदा हसते रहने वाली आरती अब गहरे मौन में चली गई थी। अपने मन की अभिव्यक्ति वह अपनी चित्रकारी से ही करती थी। किंतु अब सारे रंग उपेक्षित थे। कैनवास खाली था। कोई भी उसके भीतर झाँक नहीं पा रहा था।
समय की सबसे बड़ी खूबी है बदलाव। घाटी में भी मौसम बदलने लगा था। बर्फ पिघलने लगी थी। सफेदी के बीच हरा रंग उभर रहा था। अब अक्सर आरती की आँखें भी छलक जाती थीं। मन में जमा अवसाद पिघल कर आंसुओं के ज़रिए बाहर आने लगा था। पीड़ा की धुंध धीरे धीरे छंटने लगी। कुछ और वक़्त बीता। घाटी सुन्दर फूलों से भर गई। आरती भी ग़म के सागर से उबर कर बाहर आ गई थी। आखिर ज़िन्दगी तो चलते रहने का नाम है।
आज बहुत दिनों के बाद आरती ने भी ईज़ल पर नया कैनवास चढ़ाया और उसकी तूलिका उसमें नए रंग भरने लगी।
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