सुकेतु ने एक बार अपने आप को आईने में देखा। वह कुछ नर्वस फील कर रहा था। हालाँकि मुग्धा से ये उसकी पहली मुलाकात नहीं थी। वो दोनों एक दूसरे को पिछले छह महीने से जानते थे। किन्तु आज की मुलाक़ात कुछ ख़ास थी। उसने आज मुग्धा से अपने दिल की बात कहने का फैसला लिया था। इसी कारण से थोड़ा नर्वस था। जब से मुग्धा उसके जीवन में आई थी उसकी दुनियां ही बदल गयी थी।
अपनी पत्नी सुहासिनी की मृत्यु के बाद से सुकेतु बहुत उदास रहने लगा था। अभी उसने सुहासिनी के साथ जीवन का सफ़र शुरू ही किया था कि मृत्यु के क्रूर हाथों ने उसे छीन लिया। जीवन के सफ़र में वह अकेला रह गया। उसके लिए यह सफ़र एकदम बेरंग और बोझिल हो गया था। वह इस राह पर अकेला चलने लगा। कितना प्रयास किया उसकी माँ ने की वह दोबारा घर बसा ले किन्तु वह दोबार जीवन शुरू करने को तैयार नहीं था।
सुकेतु प्रारंभ से ही कुछ रिज़र्व नेचेर का था किन्तु पत्नी की मृत्यु के बाद तो वह और भी चुप रहने लगा। कुछ गिने चुने लोगों को ही उसके जीवन में प्रवेश की अनुमति थी। उन्हीं में एक थी मेधा। मेधा से अक्सर वह अपने दिल की बात कर लिया करता था। मेधा ने ही उसे मुग्धा से मिलाया था। मेधा के घर पर लंच पार्टी थी। वह सबसे अलग बागीचे में खड़ा फूलों को निहार रहा था। " इनसे मिलो ये हैं मुग्धा " मेधा ने उससे इंट्रोड्यूस कराते हुए कहा। सुकेतु ने नज़रें उठा कर देखा हलके रंग की सलवार कमीज पहने एक सांवली लड़की सामने खड़ी थी। उसकी सादगी उस की खूबसूरती को और बढ़ा रही थी। "फूल अपनी छोटी सी ज़िन्दगी में भी लोगों को कितना सुख दे जाते हैं। मुझे भी फूल बहुत पसंद हैं।" मुग्धा ने मुस्कुराते हुए कहा। उसकी इस बात में जो गहराई थी उससे सुकेतु बहुत प्रभावित हुआ। दोनों बागीचे में बैठ कर बातें करने लगे। वह बहुत खुली सोंच की सुलझी हुई लड़की थी। सुकेतु उससे पहली बार मिल रहा था किन्तु वह उसके साथ बहुत सहज महसूस कर रहा था। उसके व्यक्तित्व में एक ठहराव था। जो उसके अपने व्यक्तित्व से मेल खाता था। मुग्धा एक कंपनी में लीगल एडवाईज़र के पद पर काम कर रही थी। कुछ ही समय में दोनों एक दूसरे से खुल गए। चलते समय मुग्धा ने उसे अपना नंबर भी दिया।
घर आकर वह मुग्धा के बारे में ही सोंचता रहा। सुहासिनी के जाने के बाद पहली बार उसे ऐसा लगा जैसे उसके जीवन में किसी की ज़रुरत है। वह मुग्धा से और जान पहचान बढ़ाना चाहता था। कई बार उसने मुग्धा का नंबर मिलाना चाहा किन्तु संकोचवश मिला नहीं पाया। वह अपने फैसले पर विचार करने लगा। आखिरकार उसने मन में पक्का फैसला कर मुग्धा का नंबर मिलाया। " हैलो मैं सुकेतु, याद है हम मेधा के घर पर मिले थे। ......क्या हम फिर मिल सकते हैं ........हाँ आज शाम को ठीक रहेगा ......ठीक है तो आज शाम मिलते हैं।" उसने फ़ोन रख दिया और शाम का इंतज़ार करने लगा।
उसके बाद तो मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया। हर मुलाकात के साथ सुकेतु का मन और भी पक्का हो जाता कि मुग्धा ही उसके जीवन के खालीपन को भर सकती है। उसे एहसास था की मुग्धा भी उसकी तरफ वही आकर्षण महसूस करती है जो वह उसके लिए करता है किन्तु वह इस मामले में पहल करने में संकोच कर रही है। अतः उसने मन में पक्का फैसला कर आज की मुलाकात निश्चित की थी।
वो दोनों अपने पसंदीदा रेस्टोरेंट में मिले। मोमबत्ती की मद्धिम रोशनी में मुग्धा के चेहरे पर अलग ही आभा दिखाई पड़ रही थी। मुग्धा उसे आज कुछ अधिक आकर्षक लग रही थी। सुकेतु पूरे आत्मविश्वास के साथ मुग्धा से बोला " मेरी पत्नी सुहासिनी के जाने के बाद मैं बहुत अकेला हो गया था। माँ ने बहुत कोशिश की कि मैं दोबारा घर बसा लूं किन्तु मेरा मन इस बात के लिए राज़ी नहीं हुआ। पर जब से तुम मेरी ज़िन्दगी में आई हो मुझे महसूस होने लगा है कि वो तुम ही हो जो मेरे जीवन में खुशियाँ ला सकती हो। क्या तुम मेरी ज़िन्दगी का उजाला बनोगी।" अपनी बात कह कर सुकेतु मुग्धा के जवाब का इंतज़ार करने लगा।
मुग्धा कुछ देर खामोश रही। फिर हल्के से मुस्कुराकर उसने सहमति में सुकेतु का हाथ अपने हाथ में ले लिया।
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अपनी पत्नी सुहासिनी की मृत्यु के बाद से सुकेतु बहुत उदास रहने लगा था। अभी उसने सुहासिनी के साथ जीवन का सफ़र शुरू ही किया था कि मृत्यु के क्रूर हाथों ने उसे छीन लिया। जीवन के सफ़र में वह अकेला रह गया। उसके लिए यह सफ़र एकदम बेरंग और बोझिल हो गया था। वह इस राह पर अकेला चलने लगा। कितना प्रयास किया उसकी माँ ने की वह दोबारा घर बसा ले किन्तु वह दोबार जीवन शुरू करने को तैयार नहीं था।
सुकेतु प्रारंभ से ही कुछ रिज़र्व नेचेर का था किन्तु पत्नी की मृत्यु के बाद तो वह और भी चुप रहने लगा। कुछ गिने चुने लोगों को ही उसके जीवन में प्रवेश की अनुमति थी। उन्हीं में एक थी मेधा। मेधा से अक्सर वह अपने दिल की बात कर लिया करता था। मेधा ने ही उसे मुग्धा से मिलाया था। मेधा के घर पर लंच पार्टी थी। वह सबसे अलग बागीचे में खड़ा फूलों को निहार रहा था। " इनसे मिलो ये हैं मुग्धा " मेधा ने उससे इंट्रोड्यूस कराते हुए कहा। सुकेतु ने नज़रें उठा कर देखा हलके रंग की सलवार कमीज पहने एक सांवली लड़की सामने खड़ी थी। उसकी सादगी उस की खूबसूरती को और बढ़ा रही थी। "फूल अपनी छोटी सी ज़िन्दगी में भी लोगों को कितना सुख दे जाते हैं। मुझे भी फूल बहुत पसंद हैं।" मुग्धा ने मुस्कुराते हुए कहा। उसकी इस बात में जो गहराई थी उससे सुकेतु बहुत प्रभावित हुआ। दोनों बागीचे में बैठ कर बातें करने लगे। वह बहुत खुली सोंच की सुलझी हुई लड़की थी। सुकेतु उससे पहली बार मिल रहा था किन्तु वह उसके साथ बहुत सहज महसूस कर रहा था। उसके व्यक्तित्व में एक ठहराव था। जो उसके अपने व्यक्तित्व से मेल खाता था। मुग्धा एक कंपनी में लीगल एडवाईज़र के पद पर काम कर रही थी। कुछ ही समय में दोनों एक दूसरे से खुल गए। चलते समय मुग्धा ने उसे अपना नंबर भी दिया।
घर आकर वह मुग्धा के बारे में ही सोंचता रहा। सुहासिनी के जाने के बाद पहली बार उसे ऐसा लगा जैसे उसके जीवन में किसी की ज़रुरत है। वह मुग्धा से और जान पहचान बढ़ाना चाहता था। कई बार उसने मुग्धा का नंबर मिलाना चाहा किन्तु संकोचवश मिला नहीं पाया। वह अपने फैसले पर विचार करने लगा। आखिरकार उसने मन में पक्का फैसला कर मुग्धा का नंबर मिलाया। " हैलो मैं सुकेतु, याद है हम मेधा के घर पर मिले थे। ......क्या हम फिर मिल सकते हैं ........हाँ आज शाम को ठीक रहेगा ......ठीक है तो आज शाम मिलते हैं।" उसने फ़ोन रख दिया और शाम का इंतज़ार करने लगा।
उसके बाद तो मुलाकातों का सिलसिला शुरू हो गया। हर मुलाकात के साथ सुकेतु का मन और भी पक्का हो जाता कि मुग्धा ही उसके जीवन के खालीपन को भर सकती है। उसे एहसास था की मुग्धा भी उसकी तरफ वही आकर्षण महसूस करती है जो वह उसके लिए करता है किन्तु वह इस मामले में पहल करने में संकोच कर रही है। अतः उसने मन में पक्का फैसला कर आज की मुलाकात निश्चित की थी।
वो दोनों अपने पसंदीदा रेस्टोरेंट में मिले। मोमबत्ती की मद्धिम रोशनी में मुग्धा के चेहरे पर अलग ही आभा दिखाई पड़ रही थी। मुग्धा उसे आज कुछ अधिक आकर्षक लग रही थी। सुकेतु पूरे आत्मविश्वास के साथ मुग्धा से बोला " मेरी पत्नी सुहासिनी के जाने के बाद मैं बहुत अकेला हो गया था। माँ ने बहुत कोशिश की कि मैं दोबारा घर बसा लूं किन्तु मेरा मन इस बात के लिए राज़ी नहीं हुआ। पर जब से तुम मेरी ज़िन्दगी में आई हो मुझे महसूस होने लगा है कि वो तुम ही हो जो मेरे जीवन में खुशियाँ ला सकती हो। क्या तुम मेरी ज़िन्दगी का उजाला बनोगी।" अपनी बात कह कर सुकेतु मुग्धा के जवाब का इंतज़ार करने लगा।
मुग्धा कुछ देर खामोश रही। फिर हल्के से मुस्कुराकर उसने सहमति में सुकेतु का हाथ अपने हाथ में ले लिया।
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