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जंग

सुदीप आडिटोरियम में बैनर्स एवं पोस्टर्स लगा रहा था। आज सुबह ही उसने कालेज की प्रिंसिपल श्रीमती कृष्णमूर्ति से इस बात की इज़ाज़त ले ली थी। वह जल्दी जल्दी अपना काम कर रहा था। कुछ ही देर में विद्यार्थी आडिटोरियम में एकत्रित होने वाले थे।

आडिटोरियम में विद्यार्थी जुटने लगे थे और कुछ ही समय में वह खाचाखच भर गया। सुदीप ने एक नज़र आडिटोरियम के एक सिरे से दूसरे सिरे तक डाली। ज़िन्दगी से लबरेज हंसते मुस्कुराते युवाओं का जमावड़ा था। सबकी आँखों में कुछ कर दिखाने के सपने थे। 'एक ज़रा सी असावधानी इनके सारे सपने तोड़ सकती है' सुदीप के मन में विचार उठा। नहीं वह ऐसा नहीं होने देगा वह इन्हें उस खतरे से आगाह करेगा।

जब सब बैठ गए तो सुदीप ने बोलना आरम्भ किया " दोस्तों आज हम उस खतरे के बारे में बात करने को एकत्र हुए हैं जो मानव समाज के लिए एक चुनौती बना हुआ है।  यह खतरा है  'एड्स' जो मानव समाज को निगल जाना चाहता है।"

उसने एक स्लाइड शो के ज़रिये उन्हें एड्स क्या है, कैसे फैलता है, क्या सावधानियां बरतनी चाहिए इत्यादि बातों के बारे में बताया। उसके बाद विद्यार्थियों के सवालों के जवाब दिए। लगभग दो घंटों के बाद वो युवा 'एड्स'  जैसे खतरे के विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त कर अपने अपने घर चले गए। सुदीप के चहरे पर संतोष झलक रहा था। कुछ और युवाओं को उसने सावधान कर दिया था।

पिछले पांच वर्षों से उसके जीवन का यही एक उद्देश्य था लोगों को एड्स के प्रति जागरूक करना। अतः वह स्कूलों, कालेजों एवं दफ्तरों में जाकर लोगों में जागरूकता फैला रहा था।

जो वायरस उसके भीतर उसे कमज़ोर कर रहा था उसी के खिलाफ उसने जंग छेड़ रखी थी।
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