मेलाराम के आँगन में एक आम का पेड़ लगा था। यह पेड़ बहुत पुराना था। मेलाराम का परिवार बढ़ जाने के कारण घर में जगह कम पड़ने लगी थी। अतः मेलाराम ने सोंचा की इस पेड़ को कटवा कर उस जगह एक कमरा बना लिया जाये। कल ही वह इस पेड़ को कटवा देगा यह सोंच कर वह आँगन में चारपाई डाल कर सो गया। आधी रात के समय मेलाराम को किसी की सिसकियाँ सुनाई पड़ी। वह इधर उधर देखने लगा। कहीं कोई नहीं था किन्तु रोने की आवाज़ आ रही थी। उसने ध्यान से सुना तो आवाज़ आम के पेड़ से आ रही थी। वह पेड़ के पास जाकर सुनने का प्रयास करने लगा। तभी पेड़ से आवाज़ आई " मेलाराम तुम मुझे कटवा देना चाहते हो। आखिर क्यों? मेरा कुसूर क्या है? तुम्हारे जन्म से भी पहले तुम्हारे पिता ने आगन के कोने में मुझे लगाया था। मैंने तुम्हें बढ़ते हुए देखा है। याद है बचपन में कैसे तुम मेरी शाखों पर झूलते थे। गर्मियों के दिनों में मेरी शीतल छाया में आराम करते थे। मेरे रसदार फल तुम्हें आज भी अच्छे लगते हैं। सावन में जब तुम और तुम्हारे भाई बहन मेरी डाल पर झूला डाल कर झूलते थे तो मैं तुम सब को खुश देखकर और हरा हो जाता था।
बचपन से मैंने तुम्हें कितना कुछ दिया है किन्तु बदले में कुछ नहीं माँगा। आज जब बाहर वायु इतनी दूषित है मैं तुम्हें प्राणदायक आक्सीजन देता हूँ। किन्तु मुझे कटवाने का फैसला तुमने बिना कुछ सोंचे ही ले लिया। कल जब तुम मुझे कटवा डोज तब भी मैं तुम्हें ढेर साड़ी लकडियाँ देकर जाउँगा।"
मेलाराम हडबडा कर उठ गया। वह सपना देख रहा था। चारपाई पर बैठ कर वह स्वप्न के बारे में सोंचने लगा।
सच ही तो है वृक्ष हमारे कितने काम आते हैं और हम बिना सोंचे समझे उन्हें काट रहे हैं। उसने निश्चय किया की वह पेड़ नहीं काटेगा वरन आँगन में एक और पौधा लगाएगा।
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