विपुल रेस में सबसे आगे दौड़ने वाले धावक से बस कुछ ही पीछे था। रेस का अंतिम लैप था। लीड लेने के लिए विपुल ने अपनी गति बढ़ा दी। उसे पूरी उम्मीद थी कि वह इस राउंड में बढ़त बना कर स्वर्ण पदक जीत लेगा।
तेज़ दौड़ते हुए वह सबसे आगे निकल गया था। अचानक ना जाने क्या हुआ कि उसका पैर मुड़ गया। पीड़ा से कराहते हुए वह ट्रैक पर गिर गया। सब आगे निकल गए।
विपुल पीड़ा में था। जीतना तो दूर वह रेस भी पूरी नहीं कर सकता था।
हताश वह ट्रैक पर पड़ा था। तभी अपने पिता की बचपन में कही बात उसके दिमाग में गूंजने लगी "हार केवल मन की एक अवस्था है। कभी भी मन को हारने मत देना।"
वह उठा और पीड़ा को भूल कर ट्रैक पर दौड़ने लगा। पदक न जीत कर भी उसने सबका दिल जीत लिया।
तेज़ दौड़ते हुए वह सबसे आगे निकल गया था। अचानक ना जाने क्या हुआ कि उसका पैर मुड़ गया। पीड़ा से कराहते हुए वह ट्रैक पर गिर गया। सब आगे निकल गए।
विपुल पीड़ा में था। जीतना तो दूर वह रेस भी पूरी नहीं कर सकता था।
हताश वह ट्रैक पर पड़ा था। तभी अपने पिता की बचपन में कही बात उसके दिमाग में गूंजने लगी "हार केवल मन की एक अवस्था है। कभी भी मन को हारने मत देना।"
वह उठा और पीड़ा को भूल कर ट्रैक पर दौड़ने लगा। पदक न जीत कर भी उसने सबका दिल जीत लिया।
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