महेश गांव की ऊबड़ खाबड़ पगडंडी पर पैदल साइकिल लिए अपने घर जा रहा था। एक दिन और सरकारी अधिकारियों से मिलने और झूठे आश्वासनों में बीत गया था।
पिछले कई महीनों से वह अपनी जमीन के लिए लड़ाई लड़ रहा था। गांव के एक दबंग ने उस पर जबरन कब्ज़ा कर लिया था।
सूरज डूब रहा था। लेकिन उसकी उम्मीद का सूरज अभी भी चमक रहा था। कल फिर से कोशिश करेगा इस निश्चय के साथ वह अपनी साइकिल पकड़े चला जा रहा था।
पिछले कई महीनों से वह अपनी जमीन के लिए लड़ाई लड़ रहा था। गांव के एक दबंग ने उस पर जबरन कब्ज़ा कर लिया था।
सूरज डूब रहा था। लेकिन उसकी उम्मीद का सूरज अभी भी चमक रहा था। कल फिर से कोशिश करेगा इस निश्चय के साथ वह अपनी साइकिल पकड़े चला जा रहा था।
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