भैरों को देखते ही दीपा ने अपनी बेटी को भीतर चले जाने का इशारा किया। वह अपनी किताब लेकर पर्दे के पीछे चली गई।
"क्यों आए हो?" दीपा ने रूखे स्वर में पूंछा।
"अगले हफ्ते कांट्रेक्टर साहब के लड़के का तिलक है। जश्न कराना चाहते हैं।" भैरों ने इधर उधर नज़र दौड़ाते हुए कहा।
दीपा को उसकी हरकत अच्छी नहीं लगी। टालने के लिए बोली "सोंच कर बता दूंगी।
"अब उमर हो गई तुम्हारी। आराम करो। उसे काम पर क्यों नहीं लगाती।"
दीपा कुछ क्षण उसे घूरती रही।
'चटाक' तेज़ आवाज़ आई।
भैरों माँ बेटी को दर दर की ठोकरें खिलाने की धमकी देता हुआ चला गया।
"क्यों आए हो?" दीपा ने रूखे स्वर में पूंछा।
"अगले हफ्ते कांट्रेक्टर साहब के लड़के का तिलक है। जश्न कराना चाहते हैं।" भैरों ने इधर उधर नज़र दौड़ाते हुए कहा।
दीपा को उसकी हरकत अच्छी नहीं लगी। टालने के लिए बोली "सोंच कर बता दूंगी।
"अब उमर हो गई तुम्हारी। आराम करो। उसे काम पर क्यों नहीं लगाती।"
दीपा कुछ क्षण उसे घूरती रही।
'चटाक' तेज़ आवाज़ आई।
भैरों माँ बेटी को दर दर की ठोकरें खिलाने की धमकी देता हुआ चला गया।
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