विशाल अपना मन पक्का कर सविता दीदी के कमरे की ओर चल दिए। इस कठिन समय में वही मदद कर सकती थीं। उनके पास अपनी कुछ जमा पूंजी थी। पति की मृत्यु के बाद पिछले कई सालों से वह उनके साथ ही रह रही थीं।
उन्हें देखते ही सविता दीदी बोलीं "मैं तो तुम्हारे पास ही आ रही थी। अब उम्र हो चली है। पता नहीं कब बुलावा आ जाए। तुम घर जाने के लिए मेरा टिकट करवा दो।"
दीदी ने अपने बटुए से कुछ पैसे निकाल कर उनकी तरफ बढ़ाए "यह टिकट के लिए रख लो।"
"रखो दीदी इतने पैसे तो हैं। मैं टिकट करवा दूंगा।" विशाल ने हाथ जोड़ कर कहा।
उन्हें देखते ही सविता दीदी बोलीं "मैं तो तुम्हारे पास ही आ रही थी। अब उम्र हो चली है। पता नहीं कब बुलावा आ जाए। तुम घर जाने के लिए मेरा टिकट करवा दो।"
दीदी ने अपने बटुए से कुछ पैसे निकाल कर उनकी तरफ बढ़ाए "यह टिकट के लिए रख लो।"
"रखो दीदी इतने पैसे तो हैं। मैं टिकट करवा दूंगा।" विशाल ने हाथ जोड़ कर कहा।
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