नकुल टाटा कर कार में बैठ गया। स्वाती तब तक कार को देखती रही जब तक वह मोड़ पर ओझल नहीं हो गई। वह भावुक होकर रोने लगी।
"थोड़े ही दिनों के लिए सही हमें वह खुशी मिली जिसके लिए हम बरसों से तरस रहे थे। अब सब्र करो।" उसके पती शरद ने समझाया।
"पर इतने दिनों में ही मोह हो गया। क्या करूँ?"
"संभालो खुद को यह ठीक नहीं। वह हमारे पास अमानत था। अब जब उसके माता पिता मिल गए तो उसे उन्हें सौंप देना ही हमारा धर्म था।" शरद ने उसे सही रास्ता दिखाया।
"थोड़े ही दिनों के लिए सही हमें वह खुशी मिली जिसके लिए हम बरसों से तरस रहे थे। अब सब्र करो।" उसके पती शरद ने समझाया।
"पर इतने दिनों में ही मोह हो गया। क्या करूँ?"
"संभालो खुद को यह ठीक नहीं। वह हमारे पास अमानत था। अब जब उसके माता पिता मिल गए तो उसे उन्हें सौंप देना ही हमारा धर्म था।" शरद ने उसे सही रास्ता दिखाया।
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