गुप्ता जी का मन दुखी था. चालीस साल जिसका साथ निभाय वह भी आज उन्हें गलत ठहरा रही थी. वह सोंच रहे थे उन्होंने कुछ अनुचित तो नहीं कहा था. उनका जीवन बहुत संघर्षमय रहा. बहुत कष्ट झेल कर पाई पाई बचा कर यह सब संजोया था. बेटे का बिना सोंचे समझे खर्च करना उन्हें ठीक नहीं लगा. अतः पिता होने के नाते उन्होंने समझाया
"बेटा ज़रा सोंच समझ कर खर्च किया करो. पैसा बड़ी मुश्किल से आता है किंतु जाता बहुत आसानी से है."
"देखिए पापा मैं कोई बच्चा नहीं हूँ. मैं भी सब समझता हूँ. आप प्लीज़ यह लेक्चर मत दिया करिए." बेटे ने झल्लाकर कहा और वहाँ से चला गया.
गुप्ता जी आवाक रह गए. उन्होंने पास बैठी पत्नी से कहा "देखो तो यह कैसे बोल रहा है."
"आप भी तो समझने का प्रयास नहीं करते हैं. इस उम्र मे शांति से जीवन बिताने की बजाया बच्चों के जीवन में बेमतलब दखलंदाज़ी करते हैं." पत्नी ने शब्दों के तीर चलाते हुए कहा.
"बेटा ज़रा सोंच समझ कर खर्च किया करो. पैसा बड़ी मुश्किल से आता है किंतु जाता बहुत आसानी से है."
"देखिए पापा मैं कोई बच्चा नहीं हूँ. मैं भी सब समझता हूँ. आप प्लीज़ यह लेक्चर मत दिया करिए." बेटे ने झल्लाकर कहा और वहाँ से चला गया.
गुप्ता जी आवाक रह गए. उन्होंने पास बैठी पत्नी से कहा "देखो तो यह कैसे बोल रहा है."
"आप भी तो समझने का प्रयास नहीं करते हैं. इस उम्र मे शांति से जीवन बिताने की बजाया बच्चों के जीवन में बेमतलब दखलंदाज़ी करते हैं." पत्नी ने शब्दों के तीर चलाते हुए कहा.
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