एक ही शहर में उनका अपने बेटे के साथ ना रह कर अकेले रहना लोगों के गले नही उतर रहा था. लेकिन अपने निर्णय से वह पूरी तरह संतुष्ट थीं. इसे नियति का चक्र कहें किंतु जीवन में सदैव ही संघर्ष से घिरी रहीं.
जब पिता की सबसे अधिक आवश्यक्ता थी वह संसार से कूच कर गए. संघर्ष कर स्वयं को स्थापित किया तथा यथोचित भाई बहनों की भी सहायता की. अभी संतान के जन्म में कुछ समय शेष था तभी पति ज़िम्मेदारियां उन पर छोड़ किसी सत्य के अन्वेषण में निकल गए. अकेले जीवन के झंझावातों का सामना किया.
हाँ अब संघर्ष कम है. बेटे के फलते फूलते जीवन को देख गर्व होता है. उन्हें सबसे प्रेम भी है. लेकिन जीवन के ऊंचे नीचे रास्तों पर जो सदैव साथ रहा उस आत्मनिर्भरता को इस पड़ाव में आकर नही त्याग सकती हैं.
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