इस बाजार में महेशजी की कपड़े की दुकान प्रसिद्ध थी. पिछले तीस सालों से वह यहाँ कारोबार कर रहे हैं. उनके मृदु स्वभाव तथा ईमानदारी के कारण सभी उनकी इज़्जत करते हैं. महेशजी बहुत ही धार्मिक व्यक्ति हैं. भगवान कृष्ण के उपासक हैं. आए दिन कोई ना कोई धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन करते रहते हैं. धर्म के उत्थान में बहुत सक्रिय रहते हैं. इन दिनों शहर का माहौल कुछ ठीक नही है. आज व्यापार संघ के मुखिया चंदूलाल से भेंट हुई. चिंता व्यक्त करते हुए वो बोले "जिस तरह से ये लोग बढ़ रहे हैं धर्म की रक्षा के लिए अच्छा संकेत नही है. अब कुछ करने की आवश्यक्ता है."
"चिंता क्या करना कान्हाजी संभाल लेंगे." महेशजी ने अपने हाथ जोड़ते हुए कहा.
"बस यही तो हमारी कमज़ोरी है. हमें स्वयं ही करना होगा. श्रीकृष्ण ने भी तो धर्म की रक्षा का आदेश दिया है."
महेशजी कुछ नही बोले. दुकान के सामने पहुँच कर विदा ली और भीतर आ गए. आज काम कुछ अधिक रहा. नौकर संजय को भी किसी काम से बाहर भेजना पड़ा. शाम हो रही थी. महेशजी अपने नौकर के लौटने की प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह आए तो छुट्टी पाकर वह कान्हाजी के सामने दिया जला कर उन्हें माखन मिश्री का भोग लगा दें. संजय घबराया सा दुकान में दाख़िल हुआ "साबजी जल्दी से दुकान बंद करिए. शहर में दंगा हो गया है. बड़ी अफरा तफरी मची है."
"तो तुम निकलो तुम्हारे छोटे छोटे बच्चे हैं. तुम्हारा घर भी सुरक्षित जगह पर नही है." संजय एक पल ठिठका और फिर तेजी से निकल गया.
महेशजी ने कान्हाजी को प्रणाम कर माफी मांगी और तेजी से सामान समेटने लगे. बाहर आकर उन्होंने दुकान का शटर गिराया और ताला लगाने जा रहे थे कि एक स्त्री उनके कदमों के पास आकर बैठ गई. वह भय से कांप रही थी. उसका बच्चा उसके पीछे चिपका खड़ा था. "हिफ़ाज़त करें. आपको अपने रब का वास्ता." महेशजी सकपका कर पीछे हट गए. भयाकुल उसकी आंखें अनुनय कर रही थीं. उन्होंने दुकान का शटर उठाया और दोनों को दुकान के भीतर ले गए " इस समय यही सबसे महफ़ूज जगह है. बाद में जब हालात ठीक हुए तो मैं आपको आपके घर पहुँचा दूंगा." दुकान से निकलने से पहले उन्होंने कान्हाजी के माखन मिश्री का डब्बा उस बालक को थमा दिया. दुकान बंद कर वह घर की तरफ बढ़ने लगे. आज तक किए गए सारे धार्मिक अनुष्ठानों से अधिक संतुष्टि महसूस कर रहे थे.
संतुष्टि
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