[पागलपन]
उसके मित्रों रिश्तेदारों और बड़े से सर्किल में जिसने भी सुना वह चौंक गया. सभी केवल एक ही बात कह रहे थे 'भला यह भी कोई निर्णय हैं.'
सबसे अधिक दुखी और नाराज़ उसकी माँ थीं. होतीं भी क्यों नही. पति की मृत्यु के बाद कितनी तकलीफें सह कर उसे बड़ा किया था.
"इसे निरा पागलपन नही तो और क्या कहेंगे. इस उम्र में इतनी सफलता यह ऊपर वाले की कृपा ही तो है."
"तभी तो उसकी संतानों की सेवा कर उसका शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ."
"सारी दुनिया के गरीब बेसहारा लोगों के लिए एक तुम ही तो बचे हो."
वह नही जानता था कि वह अकेला है या और भी इस राह के राही हैं. यह तो उसके भीतर का कीड़ा है जो उसे पिछले कई दिनों से कुछ करने को उकसा रहा था. पीछे हटना अपने आप को धोखा देना होगा.
अब कुछ भी उसे विचलित नही करता है. सारे तानों उपहासों को अनसुना कर वह अपने पागलपन में मस्त जो ठाना है उसे पूरा करने के लिए आगे बढ़ रहा है.
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