अशोक को देखते ही नीरजा भावुक होकर उसके गले से लग कर रोने लगी। उसे पूरी उम्मीद थी कि अशोक उसे अपनी बाहों में जकड़ लेगा। प्यार से सर पर हाथ फेर कर कहेगा कि घबराओ मत, मैं हूँ ना।
पर अशोक ने उसे अपने से अलग कर दिया। खुली हुई खिड़की के बाहर देखते हुए बोला।
"मैं मानता हूँ कि जो तुम्हारे साथ हुआ उसमें तुम्हारा दोष नहीं है। किंतु हमारा समाज ऐसी चीज़ों को सही नज़र से नहीं देखता है। मुझ पर मेरी छोटी बहन के ब्याह की भी ज़िम्मेदारी है।"
नीरजा ने उसके चेहरे की तरफ देखा। एक पल में ही प्यार, विश्वास, अपनेपन के बुलबुले कठिन समय की धूप पाकर फूट गए।
बिना कुछ कहे नीरजा ने सगाई की अंगूठी निकाल कर मेज़ पर रख दी।
पर अशोक ने उसे अपने से अलग कर दिया। खुली हुई खिड़की के बाहर देखते हुए बोला।
"मैं मानता हूँ कि जो तुम्हारे साथ हुआ उसमें तुम्हारा दोष नहीं है। किंतु हमारा समाज ऐसी चीज़ों को सही नज़र से नहीं देखता है। मुझ पर मेरी छोटी बहन के ब्याह की भी ज़िम्मेदारी है।"
नीरजा ने उसके चेहरे की तरफ देखा। एक पल में ही प्यार, विश्वास, अपनेपन के बुलबुले कठिन समय की धूप पाकर फूट गए।
बिना कुछ कहे नीरजा ने सगाई की अंगूठी निकाल कर मेज़ पर रख दी।
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