जैसे तैसे एक प्याला चाय पीकर लता रसोई में चली गई। कुछ देर में उसका पति आ जाएगा। उसे आते ही खाना चाहिए। फिर उसे दूसरे काम पर जाना होगा। जहाँ से आधी रात गए लौटेगा।
वह स्वयं भी कुछ देर पहले काम से लौटी थी। दोनों पति पत्नी की ज़िंदगी भाग दौड़ में उलझी थी। पर मजबूरी थी। अपना घर खरीदने के लिए कर्ज़ लिया था। अब उसकी किस्तें चुकाने के लिए तो मेहनत करनी ही पड़ेगी। फिर अपनी छह महीने की बच्ची का भविष्य भी देखना है। उसे संभालने के लिए सास साथ में रहती हैं। रोज़ लता को उलाहना सुनना पड़ता है कि बुढ़ापे में बहू का सुख तो मिलता नहीं है। बच्ची की ज़िम्मेदारी अलग से उठानी पड़ती है।
काम करते हुए लता ने पालने में खेलती अपनी बच्ची को देखा। वह उसकी ओर देख कर मुस्कुरा रही थी। लता उसके पास गई और झुक कर उसका माथा चूम लिया। बच्ची की मुस्कान ही तो थी जो इस आपाधापी में दिल को राहत देती थी।
वह स्वयं भी कुछ देर पहले काम से लौटी थी। दोनों पति पत्नी की ज़िंदगी भाग दौड़ में उलझी थी। पर मजबूरी थी। अपना घर खरीदने के लिए कर्ज़ लिया था। अब उसकी किस्तें चुकाने के लिए तो मेहनत करनी ही पड़ेगी। फिर अपनी छह महीने की बच्ची का भविष्य भी देखना है। उसे संभालने के लिए सास साथ में रहती हैं। रोज़ लता को उलाहना सुनना पड़ता है कि बुढ़ापे में बहू का सुख तो मिलता नहीं है। बच्ची की ज़िम्मेदारी अलग से उठानी पड़ती है।
काम करते हुए लता ने पालने में खेलती अपनी बच्ची को देखा। वह उसकी ओर देख कर मुस्कुरा रही थी। लता उसके पास गई और झुक कर उसका माथा चूम लिया। बच्ची की मुस्कान ही तो थी जो इस आपाधापी में दिल को राहत देती थी।
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