होली के दिन सुबह से ही चहल पहल थी। शादी के बाद परंपरा के मुताबिक़ रश्मी की पहली होली मायके में हुई थी। अतः इस बार ससुराल में उसका पहला अवसर था। यहाँ होली बहुत धूम धाम के साथ मनाई जाती थी। सारी तैयारियां हो चुकी थीं।
बंगले के लॉन में होली का जश्न चल रहा था। लोग रंग खेल रहे थे। ढोल बज रहा था।
रश्मी अपने कमरे में चुप चाप बैठी थी तभी उसके पति ने गुलाल लगा कर उसे होली की बधाई दी।
"तुम यहाँ क्यों हो ? बाहर चल कर होली खेलो। "
रश्मी समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे। ढोल के शोर में भी उसके कानों में बरसों पुरानी अपनी असहाय चीखें गूँज रही थीं।
होली के हुड़दंग का लाभ उठाकर उसके करीबी ने सदा के लिए गुलाल का रंग ख़ूनी लाल कर दिया था।
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