सुमित्रा ने रोज़ की तरह भगवद् गीता के पाँच श्लोक पढ़ कर पुस्तक रख दी। यह उनका बरसों पुराना नियम था। इस तरह वह कई बार पूरी गीता समाप्त कर चुकी थीं।
उनके उठने पर रामदेई ने कहा।
"अम्मा जी सारा काम हो गया। वह हमारे पैसे दे दो। लड़के की फीस देनी है।"
सुमित्रा ने भीतर से लाकर पैसे दे दिए। पैसे देते हुए वह बोलीं।
"तू इतना कष्ट सह कर बेटे को पढ़ा रही है। एक दिन वह तुझे भूल जाएगा। मेरे बेटे को ही देखो। बहू के आते ही मतवाला हो गया।"
रामदेई कुछ दार्शनिक अंदाज़ में बोली।
"उसकी वह जाने अम्मा। हम तो अपना फरज निभा रहे हैं। बाकी तो देने वाला ईश्वर है।"
यह कह कर वह चली गई।
उनके उठने पर रामदेई ने कहा।
"अम्मा जी सारा काम हो गया। वह हमारे पैसे दे दो। लड़के की फीस देनी है।"
सुमित्रा ने भीतर से लाकर पैसे दे दिए। पैसे देते हुए वह बोलीं।
"तू इतना कष्ट सह कर बेटे को पढ़ा रही है। एक दिन वह तुझे भूल जाएगा। मेरे बेटे को ही देखो। बहू के आते ही मतवाला हो गया।"
रामदेई कुछ दार्शनिक अंदाज़ में बोली।
"उसकी वह जाने अम्मा। हम तो अपना फरज निभा रहे हैं। बाकी तो देने वाला ईश्वर है।"
यह कह कर वह चली गई।
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