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दस्तक

सकीना अपनी आपा के घर से निकली। अस्र की नमाज़ का वक्त होने वाला था। अतः सही समय पर घर पहुँचना चाहती थी। आपा उसे सिलाई का काम दिलवा देती थीं। आज भी इसी सिलसिले में आई थी।
पाँच साल की आयशा और आठ साल का इमरान अपनी अम्मी के साथ थे। अभी कुछ ही दूर चले थे कि नन्हीं आयशा पूँछ बैठी।
"अम्मी खाला क्या कह रही थीं कि अब्बा भाग गए। अब नहीं लौटेंगे।"
उसकी बात सुनकर परेशान सकीना चिल्ला पड़ी।
"चुप कर बहुत ज़ुबान चलने लगी है तेरी।"
आयशा सहम गई। इमरान अपनी अम्मी का दर्द समझता था। वह छोटी बहन को बहलाने लगा।
आयशा पेट में थी तभी शाहिद काम के लिए खाड़ी के मुल्क चला गया था। कह गया था कि जल्दी ही सही इंतज़ाम कर उसे और इमरान को भी ले जाएगा। लेकिन आयशा के जन्म के पाँच साल बाद भी वह नहीं लौटा। एक मोबाइल नंबर दिया था। जो कभी नहीं लगा।
सब सकीना को ही दोष देते। सही से पूँछताछ भी नहीं की कि शौहर कहाँ जा रहा है। कहाँ ठहरेगा।
लेकिन सकीना तो उसके प्यार में दीवानी थी। तभी तो अब्बा अम्मी सबकी मर्ज़ी के खिलाफ जाकर उससे निकाह किया था। अचानक ना जाने कहाँ से आकर उसके मोहल्ले में रहने लगा था। बताता था कि दुनिया में अकेला है। सकीना उसकी दुनिया बन गई और वह सकीना की।
फिर एक रोज़ जैसे आया था वैसे ही उसके जीवन से चला गया। तब से सकीना उसकी प्रतीक्षा कर रही है।
घर पहुँच कर सकीना ने अस्र की नमाज़ पढ़ी। रोज़ की तरह शाहिद के लौट आने की दुआ मांगी।
दूसरे चाहें जो कहें। उसे तो आज भी शाहिद की दस्तक का इंतज़ार है।

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