नारायण जी और उनका बेटा लगभग एक साथ ही घर में घुसे. नारायण जी रोज़ शाम को कुछ वक्त बिताने के लिए पास के पार्क में जाते थे. लौटते समय रास्ते में पड़ने वाली सब्ज़ी मंडी से तरकारी भी लेते आते थे. उनका बेटा भरत एक कंपनी में क्लर्क था. वैसे रोज़ नारायण जी का लौटना पहले होता था. लेकिन आज उन्हें उनके पुराने मित्र मिल गए थे. उन्हीं से बात करने में देर हो गई. घर के गेट पर ही भरत मिल गया.
आज गर्मी बहुत थी. नारायण जी पसीने से तर थे. तेज़ प्यास लगी थी. उन्होंने पत्नी से पानी मांगा.
"आप फ्रिज से बोतल निकाल लीजिए. भरत अभी अभी थका हारा आया है. उसे चाय पानी पूंछने दीजिए."
नारायण जी कुछ देर चुपचाप खड़े रहे. फिर फ्रिज की तरफ बढ़ गए.
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें