पत्नी के देहांत से चालीस सालों का साथ टूटने से बख़शी जी भी टूट गए. दिन भर वह अपने कमरे में पड़े रहते थे. किसी से कोई बातचीत नहीं करते थे. दिन पर दिन कमज़ोर होते जा रहे थे. परिवार में सभी दुखी थे.
उनके कमरे के बाहर गमले में लगा पौधा भी मुर्झा रहा था. वह उनकी पत्नी का रोपा हुआ था. माली ने सलाह दी कि यदि खाद पानी दिया जाए और सही धूप मिले तो अभी भी बच सकता है.
माली ने पौधे पर काम करना शुरू किया. सारा परिवार बख़शी जी की देखभाल में लग गया. स्नेह की गुनगुनाहट काम कर गई.
आज बहुत दिनों के बाद बख़शी जी बाहर बरामदे में बैठे बच्चों को खेलते देख रहे थे. पौधे में भी हरे हरे पत्ते निकल रहे थे.
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