मन्नू के घर के पास खाली पड़े प्लाट में कुछ मजदूरों ने झोपड़े बना लिए थे। वे आस पास बन रहे मकानों में मजदूरी करते थे। कोई भी उनका वहां रहना पसंद नहीं करता था। सभी उन्हें वहां से हटाने की फिराक में थे।
दिवाली आने वाली थी मन्नू की माँ ने घर की साफ़ सफाई के लिए मज़दूर परिवार की एक लड़की को बुला लिया था। उसकी उम्र मन्नू के इतनी ही थी। लड़की बड़े मन से घर की सफाई कर रही थी। जब मन्नू के कमरे की सफाई हो गयी तो मन्नू कमरे के भीतर जाकर उसका निरिक्षण करने लगा। उसने देखा की उसका एक महंगा विडिओ गेम गायब था। उस ने अपनी माँ से इसकी शिकायत की। वहीँ पड़ोस की आंटी भी बैठीं थीं वो बोलीं " हो न हो यह इस लड़की का ही काम है। ये लोग एक नंबर के चोर होते हैं। इसी ने गेम चुराकर कहीं छिपा दिया होगा। इससे ही पूंछो।" मन्नू की माँ ने लड़की को बुलाकर पूंछतांछ की। लड़की ने कोई भी चीज़ चुराने की बात से साफ़ इनकार कर दिया। पड़ोस की आंटी बोलीं "ये यूँ नहीं मानेगी दो चार लगाओ तो सब बक देगी। " यह कह कर उन्होंने उसे एक झांपड़ लगा दिया। लड़की रोने लगी। तभी फोन की घंटी बजी। मन्नू ने फोन उठाया तो वह उसके दोस्त का था। उसने बताया कल शाम मन्नू अपना गेम उसके घर छोड़ आया था। मन्नू ने सारी बात अपनी माँ को बताई। माँ ने मन्नू को उसकी लापरवाही के लिए डांट लगाई और उस लड़की से माफ़ी मांगी। आंटी जी बहाना बनाकर चुपचाप चली गयीं। लड़की बिना कुछ बोले अपना काम करने लगी।
काम ख़त्म होने पर मन्नू की माँ ने उसे उसकी मजदूरी के साथ साथ मन्नू की बहन का पुराना फ्रॉक भी देना चाहा , किन्तु वह चुपचाप अपनी मजदूरी लेकर चली गई।
मन्नू को इस घटना से बहुत दुःख हुआ।मन्नू को अपने बर्ताव पर भी अफ़सोस हो रहा था। उसे आंटी जी को उस लड़की पर हाँथ नहीं उठाने देना चाहिए था। वह अपनी गलती के लिए क्षमा मांगना चाहता था।
दिवाली वाले दिन सब जगह रौशनी थी केवल मजदूरों के झोपड़े ही सूने पड़े थे। मन्नू कुछ संकोच के साथ उन झोपड़ों की ओर बढ़ा। एक झोपड़े के बाहर वह लड़की बैठी थी। मन्नू के हाथ में एक पैकेट था। उस ने वह पैकेट उस लड़की को दे दिया। फिर दोनों कानों को पकड़ कर कहा "सॉरी ". लड़की मुस्कुरा दी। मन्नू ख़ुशी ख़ुशी अपने घर लौट आया। उस पैकेट में कुछ पटाके और चाकलेट्स थे जो उस ने दिवाली पर मिले पैसों से ख़रीदे थे।
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