आज हमारी शादी की पैतीसवीं वर्षगांठ है। मैं तुम्हारे मन पसंद फूलों का गुलदस्ता लाया हूँ। तुमने एक उचटी सी निगाह फूलों पर डाली और फिर शून्य में जाने क्या ताकने लगीं। मेरा ह्रदय विदीर्ण हो गया। इस अल्जाइमर्स के रोग ने तुम्हें मुझसे कितना दूर कर दिया है। एक साथ रह कर भी मैं तुम्हारे लिए अजनबी हो गया हूँ।एक बच्चे की तरह तुम्हारी देख भाल करनी पड़ती है। तुम्हें खिलाना, तुम्हारी दवाओं का ख़याल रखना।अकेले सब कुछ सँभालते सँभालते कभी कभी परेशान हो जाता हूँ। मैं चाहता हूँ की तुम बस एक नज़र भर मुझे देख लो। तुम देखती भी हो तो तुम्हारी नज़रों में एक अपरिचय का भाव होता है।जब भी मैं टूटने लगता हूँ तो तुम्हारा वो पहले वाला मुस्कुराता हुआ चेहरा याद करता हूँ। कठिन से कठिन समय में भी कैसे तुम मुस्कुरा कर मेरा हौंसला बढाती थीं। तुम्हारी मुस्कान मुझे मेरी सारी परेशानी भुला देती थी। हमारी शादी के समय तुमने जो वचन दिए थे उन्हें तुमने तीस वर्षों तक बखूबी निभाया। अब मेरी बारी है अपने वचन निभाने की।
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