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अनोखा संता

मिस्टर मैसी बाहर से आये तो उन्होंने देखा की उनकी पत्नी ने फिर से सारे खिलोने बिस्तर पर सजा रखे हैं। वो एक  टक उन्हें निहार रही हैं। मिस्टर मैसी ने उनके कंधे पर हाथ रखा तो वो जोर जोर से सुबकने लगीं। यह सरे खिलोने उन लोगों ने अपने पोते टोनी के लिए खरीदे थे। उसे इनके साथ खेलते देखने की बड़ी तमन्ना थी।
उनका इकलौता बेटा जॉन उनके जीवन का केंद्र था। जॉन एक अच्छी नौकरी पर था। उसकी पसंद की लड़की से उसका विवाह हो गया और एक साल के भीतर ही टोनी उनके जीवन में ढेरों खुशियाँ लेकर आया। मिस्टर और मिसेज मैसी बहुत खुश थे। प्रभु ने उनकी सारी मुरादें पूरी कर दी थीं। जीवन आनंद से गुजर रहा था। तभी एक दिन जॉन ने उन्हें दुबई जाने का फैसला सुनाया " पापा मुझे बहुत अच्छा ऑफर मिला है। मैं सोंचता हूँ की कुछ साल वहाँ रह कर कुछ पैसे जमा कर लूं। फिर यहाँ लौट कर अपना कोई कारोबार करूंगा।" मिस्टर मैसी ने समझाना चाहा की उसे यहाँ की अच्छी खासी नौकरी छोड़ कर जाने की क्या ज़रूरत है। यदि वह चाहे तो वह उसे अपना कारोबार शरू करने के लिए पूंजी दे सकते हैं किन्तु जॉन ने कहा की वह अपने दम पर कुछ करना चाहता है। मिस्टर मैसी ने उसका फैसला मान लिया। जॉन अपनी पत्नी और दो माह के टोनी को लेकर दुबई चला गया।
दोनों पति पत्नी अकेले हो गए। टोनी की उन्हें बहुत याद आती थी। उन्होंने उसे केवल तस्वीरों में और विडिओ चैट्स में ही बड़ा होता देखा था। जब भी उनकी टोनी से बात होती तो उनका मन करता की उड़ कर उसके पास चले जाएँ। दोनों पति पत्नी उस दिन की राह देख रहे थे जब जॉन अपने देश लौटेगा।
तीन महीने पूर्व जब जॉन ने उन्हें बताया की वह हमेशा के लिए भारत आ रहा है तो उनकी ख़ुशी का ठिकाना न रहा। लगा जैसे खुशियों ने एक बार फिर उनके द्वार पर दस्तक दी है। दोनों अपने पोते के स्वागत की तैयारियां करने लगे। उन्होंने उसके लिए ढेर सारे खिलौने खरीदे। उसे उन खिलौनों के साथ खेलने के सपने सजोने लगे।
किन्तु विधि की मंशा कुछ और थी। उनके बच्चों के बजाए उनके घर तीन कॉफिन आये। उन्हें खाक के सुपुर्द करते हुए उन्होंने अपने सरे अरमानों को भी खाक में दफ़न कर दिया।
मिस्टर मैसी बड़ी मुश्किलों से इस दुःख से बाहर आने का प्रयास कर रहे थे किन्तू उनकी पत्नी इस दर्द को भुला नहीं पा रही थीं। अक्सर वह सारे खिलौनों को सजा कर घंटों उन्हें घूरती रहती थीं। अपनी पत्नी को चुप करा कर मिस्टर मैसी बाहर बालकनी में आकर बैठ गए। वो किसी गहरी सोंच में डूबे थे। कुछ देर सोंचने के बाद वो एक फैसले पर पहुंचे। बिना कुछ कहे वो बाहर चले गए।
जब वो लौटे तो उनके हाथ में पैकिंग पेपर था। वो  सारे खिलौने पैक करने लगे। अपनी पत्नी को समझते हुए बोले " जिस के लिए ये खरीदे थे वह रहा नहीं। दुनियां में बहुत से ऐसे बच्चे हैं जिन्हें खिलौने देने वाला कोई नहीं। क्यों न हम उन्हें ये खिलौने दें।यही सोच कर मैंने चर्च के अनाथालय में बात कर ली है। हम ये खिलौने उन बच्चों को देंगे।" यह कह कर उन्होंने सारे खिलौने एक थैले में भरे और चल दिए छोटे छोटे चेहरों पर मुस्कान लाने  के लिए।












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