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सामने वाली बालकनी

मैं अपनी व्हीलचेयर को खिड़की के पास ले गया। खिड़की खोलकर सामने वाली बालकनी की तरफ देखने लगा। किसी भी समय वो दोनों आकर बालकनी में बैठेंगे। पहले पति आयेगा और उस के पीछे चाय की ट्रे लिए पत्नी आयेगी। दोनों चाय की चुस्कियां लेते हुए एक दूसरे से बातें करेंगे। कभी हसेंगे तो कभी ख़ामोशी से एक दूसरे के साथ का आनंद लेंगे। सुबह शाम दोनों वक़्त का यही सिलसिला है।

दोनों की उम्र 65 से 70 के बीच होगी। मेरी नौकरानी ने बताया था की दंपति निसंतान हैं। उनका एक भतीजा कुछ वर्षों तक इनके घर पर रह कर पढ़ा था वही कभी कभी मिलने  आ जाता है। इस उम्र में पति पत्नी ही एक दूसरे के सुख दुःख के साथी हैं।

दो वर्ष पूर्व एक सड़क दुर्घटना में मैंने अपनी पत्नी को खो दिया। रीढ़ की हड्डी में लगी चोट ने मुझे इस व्हीलचेयर पर बिठा दिया। अकेलेपन की पीड़ा को मैंने बहुत शिद्दत से महसूस किया है। किसी के संग अपने मन की बात कह सकने की आकुलता को मैं समझता हूँ। यही कारण है की उन्हें एक दूसरे के साथ बात करते देख मन को सुकून मिलता है।

कभी कभी मन में एक अपराधबोध भी होता है की मैं उनके इन अन्तरंग पलों को दूर से बैठ कर देखता हूँ। किन्तु मेरे सूने जीवन में यह कुछ पल ही ख़ुशी लाते हैं।

किन्तु आज माहौल कुछ बदला बदला लग रहा है। उनके घर के सामने कुछ लोग ख़ामोशी से खड़े हैं। एक लाश गाड़ी भी घर के पास खड़ी है। मैं क़यास लगा ही रहा था की मेरी नौकरानी कमरे की सफाई करने आ गई। मैंने इस विषय में उस से पुछा तो उसने बताया "वो सामने वाली माताजी को कल रात अचानक छाती में दर्द उठा डाक्टर के पास ले जाने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया।" यह कह कर वह कमरे की सफाई करने लगी।

मैंने खिड़की बंद कर दी। पति का चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम गया। उसके दिल का दर्द मेरी आँखों से बहने लगा।

http://www.tumbhi.com/writing/short-stories/samney-wali-balcony/ashish-trivedi/37509#.U7Tqna6CHoo.gmail

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