मेरी बेटी का दाखिला शहर के सबसे अच्छे कॉलेज में हुआ था. सब ठीक था. लेकिन क्योंकी मेरे एक परिचित वहाँ कर्मचारी थे मैं उनसे मिल कर प्रार्थना करने गया था कि नए माहौल में मेरी बेटी का खयाल रखें. उनसे आश्वासन पाकर मैं लौट रहा था तो देखा कि कैंपस में एक जगह तंबू लगाकर कुछ लोग हाथों में तख्तियां लिए बैठे थे. सबकी आंखों में चिंता थी. चेहरे उदास थे. मैंने एक व्यक्ति से पूंछा तो उसने बताया कि वह सभी अस्थाई शिक्षक थे. जो कई वर्षों से पढ़़ा रहे थे. लेकिन अब इनकी नौकरी पर ख़तरे के बादल मंडरा रहे थे. अतः धरने पर बैठे थे.
मेरी आंखों के सामने तेज़ हवा में कांपते पत्तों का दृश्य उभर आया जो भयभीत हों कि कहीं शाख से टूट ना जाएं.
मेरी आंखों के सामने तेज़ हवा में कांपते पत्तों का दृश्य उभर आया जो भयभीत हों कि कहीं शाख से टूट ना जाएं.
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