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गपोड़ी


संदीप को बड़ी बड़ी हांकने की आदत थी. स्वयं को श्रेष्ठ बताने के लिए सफेद झूठ भी बड़ी आसानी से बोल देता था. अपने क्षेत्र के विधायक विलास गुप्ता को लेकर उसने ऐसा ही झूठ अपने मोहल्ले में बोल रखा था. उसने सभी से कह रखा था कि विधायक जी तो उसके रिश्तेदार हैं. उनके साथ घर जैसे संबंध हैं.
ऐसा नही था कि सब उसकी बात पर यकीन कर लेते थे किंतु कोई कुछ कहता नही था. पीठ पीछे सभी उसे गपोड़ी कहते थे. रमन को उसकी आदत पसंद नही थी. वह चाहता था कि संदीप को सबक सिखाया जाए. जल्द ही यह मौका उसके हाथ लग गया. इधर कई दिनों से मोहल्ले में बिजली पानी की बहुत समस्या थी. सभी को बड़ी परेशानी झेलनी पड़ रही थी. सभी मोहल्ले वालों ने मिलकर एक मीटिंग की कि कैसे इस समस्या से निपटा जाए.
शर्मा जी ने कहा "बहुत दिक्कत झेलनी पड़ रही है. पीने को भी पानी नही है. बिजली भी नही आती है. सब कुछ अस्त व्यस्त है."
"अरे मेरे घर तो तीन दिन से खाना नही बना. बाहर से मंगा रहे हैं. क्या करें." टंडन जी ने अपनी व्यथा सुनाई.
"करें क्या यह सोंचिए. मुझे तो लगता है कि हमें किसी नेता को पकड़ना चाहिए." कनौजिया जी ने सलाह दी. सब उनकी बात से सहमत हो गए.
मौका पाते ही रमन बोला "अरे अपने विधायक जी तो संदीप के रिश्तेदार हैं. इसके तो घरेलू संबंध हैं उनके साथ. हम सब इसके साथ विधायक जी के पास चल कर उन्हें अपनी समस्या बताते हैं."
सभी फौरन तैयार हो गए. रमन ने संदीप से पूंछा "क्यों भाई कब हम लोगों को विधायक जी के पास ले चलोगे."
संदीप की बुरी स्थिति थी. उससे ना हाँ करते बन पा रहा था और ना ही ना. उसका बोला झूठ गले की हड्डी बन गया था.

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