सभी कह रहे थे कि नीरज बहुत भाग्यशाली है. वरना इतने बड़े हादसे के बाद उसका बच जाना और अपने पैरों खड़ा हो पाना किसी चमत्कार से कम नही था.
यह संभव हो पाया था उसकी पत्नी विभा के प्रेम और अथक सेवा के कारण. वही विभा जिसे नीरज ने कभी प्रेम और सम्मान नही दिया.
नीरज को अपने पिता के दबाव में आकर विभा से विवाह करना पड़ा था.
अभी तो उसने नौकरी आरंभ की थी. कुछ दिन वह स्वतंत्र रहना चाहता था
जीवन को अपने हिसाब से जीना चाहता था. दरअसल वह अपनी पसंद की लड़की से ब्याह करना चाहता था. अतः विवाह के बाद विभा उसे पैर में बंधी जंजीर सी लगती थी. इसलिए उसने स्व़यं को उस जंजीर से मुक्त कर लिया. विभा को कभी पत्नी के तौर पर नही अपनाया.
उसकी दुनिया घर के बाहर थी. देर रात तक वह दोस्तों के साथ पार्टी करता रहता था. अक्सर शराब के नशे में धुत घर आता था. वह दूसरी औरतों में अपना प्यार तलाशने लगा था.
विभा सब चुपचाप सह रही थी. वह कमज़ोर नही थी सिर्फ अपनी शादी को एक मौका देना चाहती थी. उसे यकीन था कि एक दिन अपने भटके हुए पति को सही राह पर ले आएगी.
एक दिन जब नीरज देर रात एक पार्टी से लौट रहा था तब नशे में होने के कारण कार पर काबू नही रख पाया. उसकी कार दूसरी कार से टकरा गई.
कई दिनों के बाद जब नीरज को होश आया तो उसने विभा को अपने सिरहाने पाया. विभा मन प्राण से उसकी सेवा करती थी. धीरे धीरे उसका मन बदलने लगा. विभा का धैर्य और साहस देख कर उसके मन में उसके प्रति आदर पैदा होने लगा. अब अक्सर वह पछताता था कि वह इस हीरे की उपेक्षा कर काँच के टुकड़ों की चमक से चकाचौंध था. लेकिन यह समझने में उसे बहुत देर लगी थी.
आज उसे अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी. विभा उसी की तैयारी कर रही थी. नीरज ने उसे अपने पास बुलाया और उसका हाथ थाम कर बोला "आज मैं तुमसे सच्चे दिल से क्षमा मांगता हूँ. मैंने तुम्हारा बहुत तिरस्कार किया है. मैं मूर्ख तो यह भी नही समझ पाया कि जिसकी मुझे तलाश थी वह तो मेरे ही पास थी." यह कह कर उसने अपने हाथ जोड़ लिए.
विभा ने उन्हें थाम कर चूम लिया.
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