अस्पताल के बिस्तर पर बैठी विभा अपने पति आने की प्रतीक्षा कर रही थी. आजकल बहुत भागदौड़ रहती है उनकी. दिन भर दफ्तर का काम. शाम को थके हारे लौटते हैं. थोड़ा खा पीकर उसका खाना लेकर अस्पताल आ जाते हैं. रात में उसके पास रह कर उसकी देखभाल करते हैं. सुबह फिर दफ्तर के लिए निकल जाते हैं. यह सब सोंच कर उसके हृदय में पीड़ा सी उठी.
तभी उसके पति आ गए. आते ही उसके माथे पर हाथ फेर कर उसका हाल पूंछा. बैग से खाने का डब्बा निकालते हुए बोले "तुम्हें भूख लगी होगी. आज दफ्तर से लैटने में देर हो गई." चम्मच में दलिया लेकर उसे खिलाने लगे. खाते हुए उसकी आंखें भर आईं. उसके पति ने प्यार से उसके आंसू पोंछे फिर उसे खिलाने लगे. खाना खत्म होने पर उसे पानी पिलाया. फिर उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोले "तुम रोज़ अपने माथे पर सिंदूर की बिंदी लगाती हो. कहती हो कि यह हमारे प्रेम आपसी विश्वास तथा साझा जीवन का प्रतीक है. मेरे भी मन का आकाश सदैव हमारे प्यार आपसी विश्वास के सिंदूरी रंग से रंगा हुआ है."
उसके पति के इन शब्दों ने उसके दिल मे संजीवनी की तरह असर किया. मन खिल उठा.
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