वैभव के मन में अजीब सी हलचल थी.आज उसे निकिता से मिलने जाना था. यूं तो पहले भी एक दो मुलाकाते हो चुकी थीं किंतु आज की मुलाकात अलग थी. आज वह उसे प्रपोज़ करने वाला था.
दिशा से अलगाव के बाद उसने स्वयं को एक दायरे में समेट लिया था. कुछ एक खास दोस्तों को छोड़ कर किसी से नही मिलता था. अपने ऐसे ही दोस्त विशाल के नए घर की खुशी में दी गई पार्टी में वह निकिता से मिला था. वह सबसे अलग एक कोने में खड़ा एक पेंटिंग को देख रहा था. तभी पीछे से किसी ने पूंछा "आपको पेंटिंग्स का शौक है." उसने पलट कर देखा तो सफेद लिबास में एक लड़की खड़ी थी. उसकी सादगी उसकी खूबसूरती में चार चांद लगा रही थी. उसने अपना हाथ आगे बढ़ाया "निकिता". अपना परिचय देकर वैभव बोला "हाँ थोड़ा बहुत है. यह पेंटिग बहुत खूबसूरत हे."
"इसे मैनें ही बनाया है विशाल के नए घर की खुशी में तोहफे के तौर पर."
उसके बाद दोनों बातें करने लगे. बहुत दिनों के बाद वैभव को किसी से बात करना अच्छा लगा. वो दोनों काफी देर तक बातें करते रहे. यहाँ तक कि चलते समय एक दूसरे के नंबर भी ले लिए. अक्सर दोनों फोन पर बात करते. एक दो बार मिले भी. वैभव अपने भीतर बदलाव महसूस करने लगा था. ज़िंदगी पहले जैसी सुंदर लगने लगी थी. इस सब का कारण निकिता थी. वह अपने दिल की बात उससे कहना चाहता था. इसी लिए आज की मुलाकात रखी थी.
अभी समय था. वह आकर बालकनी में खड़ा हो गया. शाम बहुत सुहावनी थी. आसमान सिंदूरी रंग से रंगा था. उसे लगा कि उसके आने वाले जीवन के लिए यह शुभ संकेत है.
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