पुरुषोत्म लालवानी शहर के माने हुए वकील थे. उनका वकालत के क्षेत्र में बहुत नाम था. यह सब उनकी चालीस वर्षों की अथक तपस्या का नतीजा था. किंतु अब उम्र हो गई थी. शरीर थकने लगा था. डॉक्टर ने साफ शब्दों में कह दिया था कि अब केवल आराम कीजिए. लेकिन इतनी मेहनत से बनाई इस पूरी व्यवस्था को वह छोड़ नही पा रहे थे.
तैयार होकर जब वह निकलने लगे तो पत्नी ने समझाना चाहा किंतु वह नही माने.
रास्ते में ड्राईवर ने महसूस किया कि साहब तकलीफ में हैं. वह फौरन उन्हें अस्पताल ले गया. अपने फोन से मालकिन को फोन कर दिया.
सही समय पर इलाज से लालवानी साहब के प्राण बच गए. अपनी पत्नी का हाथ अपने हाथ में लेकर बोले "इस झटके ने सही राह दिखा दी. अब बाकी का जीवन तुम्हारे साथ खुशी से बिताऊंगा."
तैयार होकर जब वह निकलने लगे तो पत्नी ने समझाना चाहा किंतु वह नही माने.
रास्ते में ड्राईवर ने महसूस किया कि साहब तकलीफ में हैं. वह फौरन उन्हें अस्पताल ले गया. अपने फोन से मालकिन को फोन कर दिया.
सही समय पर इलाज से लालवानी साहब के प्राण बच गए. अपनी पत्नी का हाथ अपने हाथ में लेकर बोले "इस झटके ने सही राह दिखा दी. अब बाकी का जीवन तुम्हारे साथ खुशी से बिताऊंगा."
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