रुक्मणी के बेटे को जब वीरता हेतु पुलिस पदक प्रदान किया गया तो उसकी आंखें भर आईं. अब तक का सफर उसकी आंखों के सामने घटने लगा.
पति को व्यापार में बड़ी हानि उठानी पड़ी. उस धक्के से वह उबर नही पाए. हिम्मत हार कर घर पर बैठ गए. उसने पूरी कोशिश की कि उन्हें निराशा से निकाल सके किंतु ऐसा हो नही पाया. एक दिन कागज़ पर दो पंक्तियां लिख कर वह घर छोड़ कर चले गए.
उस पर जैसे पहाड़ टूट गया. वह सोंच रही थी कि क्या करे. परंतु जब बेटे की आंखों में भविष्य को लेकर डर देखा तो उसने फैसला कर लिया कि टूटेगी नही. संघर्ष के लिए उसने कमर कस ली.
ना जाने कितने तानों के पत्थर उसे मारे गए. कितनी निगाहें उसे भेदती रहीं पर वह अविचल रही. अपनी राह पर बढ़ती रही.
आज उसकी तपस्या सफल हो गई थी.
पति को व्यापार में बड़ी हानि उठानी पड़ी. उस धक्के से वह उबर नही पाए. हिम्मत हार कर घर पर बैठ गए. उसने पूरी कोशिश की कि उन्हें निराशा से निकाल सके किंतु ऐसा हो नही पाया. एक दिन कागज़ पर दो पंक्तियां लिख कर वह घर छोड़ कर चले गए.
उस पर जैसे पहाड़ टूट गया. वह सोंच रही थी कि क्या करे. परंतु जब बेटे की आंखों में भविष्य को लेकर डर देखा तो उसने फैसला कर लिया कि टूटेगी नही. संघर्ष के लिए उसने कमर कस ली.
ना जाने कितने तानों के पत्थर उसे मारे गए. कितनी निगाहें उसे भेदती रहीं पर वह अविचल रही. अपनी राह पर बढ़ती रही.
आज उसकी तपस्या सफल हो गई थी.
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