दीवार पर लटकी पेंटिंग ने मुझे मेरे दोस्त की याद दिला दी. काँच का एक भरा हुआ प्याला. ऐसे ही जिंदगी से भरपूर था मिलिंद. जो भीतर था वही बाहर. कोई दुराव छिपाव नही.
पाँच सालों की हमारी दोस्ती में मैंने उससे बहुत कुछ सीखा. मैं एक गुपचुप रहने वाला इंसान था. जीवन में इतना कुछ खोया था कि डर डर कर जीता था. वो मुझसे बिल्कुल जुदा था. पर अक्सर विपरीत चीजों में एक दूसरे के लिए आकर्षण होता है. मुझे उसकी ज़िंदादिली अच्छी लगी थी.
जैसे जैसे मैं उसे जानता गया हमारी दोस्ती गहरी होती गई. उसके साथ रह कर मैंनेआने वाले कल को लेकर परेशान होने की बजाय वर्तमान को पूर्णता में जीना सीखा था.
पिछले छह महीनों में उसने मुझे जीवन का सही मूल्य समझाया. बीमारी उसके शरीर को भीतर से खोखला कर रही थी किंतु उसकी जिजीविषा को कम नही कर पाई. अपने दर्द में भी वह मुस्कुराता रहा और यह सबक देकर गया कि जीवन को हर हाल में जीना चाहिए.
पाँच सालों की हमारी दोस्ती में मैंने उससे बहुत कुछ सीखा. मैं एक गुपचुप रहने वाला इंसान था. जीवन में इतना कुछ खोया था कि डर डर कर जीता था. वो मुझसे बिल्कुल जुदा था. पर अक्सर विपरीत चीजों में एक दूसरे के लिए आकर्षण होता है. मुझे उसकी ज़िंदादिली अच्छी लगी थी.
जैसे जैसे मैं उसे जानता गया हमारी दोस्ती गहरी होती गई. उसके साथ रह कर मैंनेआने वाले कल को लेकर परेशान होने की बजाय वर्तमान को पूर्णता में जीना सीखा था.
पिछले छह महीनों में उसने मुझे जीवन का सही मूल्य समझाया. बीमारी उसके शरीर को भीतर से खोखला कर रही थी किंतु उसकी जिजीविषा को कम नही कर पाई. अपने दर्द में भी वह मुस्कुराता रहा और यह सबक देकर गया कि जीवन को हर हाल में जीना चाहिए.
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