"यह क्या बात हुई कि मुझे स्वाद पसंद नही. भला दवा भी कोई स्वाद के लिए खाता है." कपूर साहब ने पत्नी को डांट लगाई. परंतु फिर भी उन्होंने दवा नही पी. गुस्से में दवा मेज़ पर पटक कर बोले "मैं सब समझता हूँ तुम ठीक नही होना चाहती हो ताकि मुझे परेशान कर सको."
वह बाहर बरामदे में आ गए. ढलती धूप का एक छोटा सा टुकड़ा शरीर को गुनगुना लगा. वह वहीं कुर्सी डाल कर बैठ गए.
कुछ ही देर में धूप का वह टुकड़ा गायब हो गया. सर्द हवा शरीर को चुभने लगी. किंतु वह वहीं बैठे रहे.
"अब बच्चों की तरह मुंह फुला कर यहाँ क्यों बैठे हैं." उनकी पत्नी ने बाहर आकर कहा. उनका हाथ पकड़ कर उठाते हुए बोलीं "चलो जी हवा ठंडी है बीमार पड़ जाओगे."
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