मैं अपने बेटे अमन को दशहरे का मेला दिखाने ले गया था. अमन को उस चहल पहल में बहुत आनंद आ रहा था. कुछ ही देर में रावण दहन होने वाला था. मैं उसे लेकर उस हिस्से में पहुँचा जहाँ रावण मेघनाद तथा कुंभकरण के पुतले थे.
दशहरे का महत्व समझाते हुए मैंने अमन से कहा "बेटा आज के दिन प्रभु रामचंद्र जी ने रावण को उसके बुरे कर्मों का दंड देने के लिए उसका वध किया था. अतः आज हम बुराई के प्रतीक रावण मेघनाद तथा कुंभकरण के पुतले जलाते हैं."
कुछ देर सोंचने के बाद अमन ने मुझसे प्रश्न किया "पापा क्या ऐसा करने से बुराई कम हो जाती है."
ज़ोरदार आतिशबाज़ी के साथ मेरे सामने तीनों पुतले धू धू कर जल रहे थे.
अमन के प्रश्न ने मेरे मन में हलचल पैदा कर दी थी. परंतु उसके सवाल का मेरे पास कोई वाजिब जवाब नही था. अतः उसे टालने के लिए मैं उसे जाइंटव्हील की राइड के लिए ले गया.
दशहरे का महत्व समझाते हुए मैंने अमन से कहा "बेटा आज के दिन प्रभु रामचंद्र जी ने रावण को उसके बुरे कर्मों का दंड देने के लिए उसका वध किया था. अतः आज हम बुराई के प्रतीक रावण मेघनाद तथा कुंभकरण के पुतले जलाते हैं."
कुछ देर सोंचने के बाद अमन ने मुझसे प्रश्न किया "पापा क्या ऐसा करने से बुराई कम हो जाती है."
ज़ोरदार आतिशबाज़ी के साथ मेरे सामने तीनों पुतले धू धू कर जल रहे थे.
अमन के प्रश्न ने मेरे मन में हलचल पैदा कर दी थी. परंतु उसके सवाल का मेरे पास कोई वाजिब जवाब नही था. अतः उसे टालने के लिए मैं उसे जाइंटव्हील की राइड के लिए ले गया.
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