खिड़की पर खड़े हुए सरोज की नज़र बाहर क्यारी पर पड़ी. नया नया अंकुर जो भूमि से फूटा था किसी के पैरों के नीचे मसल गया था. उसकी पीड़ा उसने अपनी कोख में महसूस की. उसकी आंखों से आंसू झरने लगे.
"यह क्या तूने फिर खाना नही खाया." उसकी सखी शकीला ने कमरे में घुसते हुए कहा.
सरोज ने सूनी आंखों से उसकी ओर देखा. शकीला का मन भर आया. उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली "अभी देह कमज़ोर है. बिना खाए कैसे चलेगा. ये ज़ालिम लोग कहाँ छोड़ेंगे. रात को फिर किसी के साथ बिठा देंगे. सहने के लिए ताकत तो चाहिए." कह कर शकीला चली गई.
सरोज थाली लेकर बैठ गई. अपनी सारी भावनाओं को उन लोगों ने दिल में दफन कर लिया था. इसी तरह वह सब यहाँ जिंदा रह पाती थीं.
"यह क्या तूने फिर खाना नही खाया." उसकी सखी शकीला ने कमरे में घुसते हुए कहा.
सरोज ने सूनी आंखों से उसकी ओर देखा. शकीला का मन भर आया. उसके सर पर हाथ फेरते हुए बोली "अभी देह कमज़ोर है. बिना खाए कैसे चलेगा. ये ज़ालिम लोग कहाँ छोड़ेंगे. रात को फिर किसी के साथ बिठा देंगे. सहने के लिए ताकत तो चाहिए." कह कर शकीला चली गई.
सरोज थाली लेकर बैठ गई. अपनी सारी भावनाओं को उन लोगों ने दिल में दफन कर लिया था. इसी तरह वह सब यहाँ जिंदा रह पाती थीं.
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