सुबह साढ़े चार बजे का अलार्म बजते ही विनय उठ गया। बाहर बूंदा बांदी हो रही थी। इस सब की परवाह किए बिना वह घर से बाहर जाने के लिए तैयार होने लगा।
"पागल हो गया है। इस मौसम में जाएगा। तभी सब तुझे सनकी कहते हैं।" बड़ी बहन ने डांटा।
रोज़ वह तड़के उठ कर दौड़ लगाने तथा कसरत करने जाता था। सेना में भर्ती होना उसका लक्ष्य था।
पहले और भी लड़कों ने उसके साथ अभ्यास शुरू किया था। किंतु पहली विफलता ने ही उनके हौंसले को कम कर दिया। धीरे धीरे सबने सुबह का नियम समाप्त कर दिया।
पर विनय ने हिम्मत नहीं हारी थी। "दीदी लोग क्या कहते हैं मुझे परवाह नहीं। यह मेरे लिए तपस्या है। अपने लक्ष्य को पाए बिना मैं नहीं रुकूँगा।"
कह कर वह निकल गया।
"पागल हो गया है। इस मौसम में जाएगा। तभी सब तुझे सनकी कहते हैं।" बड़ी बहन ने डांटा।
रोज़ वह तड़के उठ कर दौड़ लगाने तथा कसरत करने जाता था। सेना में भर्ती होना उसका लक्ष्य था।
पहले और भी लड़कों ने उसके साथ अभ्यास शुरू किया था। किंतु पहली विफलता ने ही उनके हौंसले को कम कर दिया। धीरे धीरे सबने सुबह का नियम समाप्त कर दिया।
पर विनय ने हिम्मत नहीं हारी थी। "दीदी लोग क्या कहते हैं मुझे परवाह नहीं। यह मेरे लिए तपस्या है। अपने लक्ष्य को पाए बिना मैं नहीं रुकूँगा।"
कह कर वह निकल गया।
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